अहिंसा और समता है परम धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

उंढाई। 20 मई, 2025

अहिंसा और समता है परम धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण

ज्ञान के महाभंडार आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 10 किमी का विहार कर उंढाई के शाह नगीनदास परसोत्तमदास हाईस्कूल के प्रांगण में पधारे। मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने कहा, 'जीवन में समता की साधना करके हम विशेष प्रसन्नता को प्राप्त कर सकते हैं। लाभ हो या अलाभ, सुख हो या दुःख, निंदा हो या प्रशंसा, जीवन हो या मृत्यु की स्थिति — चाहे मान मिले या अपमान, इन सभी में समता रहनी चाहिए। क्षमा करना बड़ी बात है। धर्म के क्षेत्र में समता का बहुत महत्व है। न अधिक प्रसन्न होना चाहिए, न ही दुःखी होना चाहिए। हर स्थिति में मानसिक संतुलन बनाए रखना चाहिए। मन में शांति रहे, न द्वेष हो न राग। क्षमा करना बड़ा धर्म है। यदि कोई व्यक्ति कितना भी अपराध कर ले, पर वह गाय जैसा निष्कपट बन जाए, तो उसे क्षमा कर देना चाहिए। यही अहिंसा और समता की भावना है।
हमारे मन में अहिंसा और समता की भावना रहनी चाहिए। साधु तो त्याग, समता, क्षमा और अहिंसा की मूर्ति होते हैं। ''तन कर, मन कर, वचन कर देत न काहु दुःख। तुलसी पातक झड़त है, देखत वा को मुख।'' — साधु का दर्शन करने से भी पाप झड़ सकते हैं। संतों का गांव में आगमन शुभ होता है। सुत, दारा और लक्ष्मी तो पापियों को भी मिल सकती हैं, पर संत समागम और हरिकथा दुर्लभ होते हैं। संत पुरुषों की संगति से सद्ज्ञान और अच्छे संस्कार प्राप्त होते हैं। वे महाव्रतधारी, ग्रहत्यागी होते हैं। साधु को न नोट चाहिए, न वोट चाहिए, न प्लॉट चाहिए — बस गृहस्थों के जीवन की खोट को दूर करने का प्रयास करते हैं। समता मन में हो तो ही सच्चा सुख मिलता है। राग के समान कोई दुःख नहीं और त्याग के समान कोई सुख नहीं। साधु का संयम और त्याग ही उनका धन होता है। वे कंचन-कामिनी के त्यागी होते हैं।
शुद्ध साधु चाहे किसी देश, वेष या परिवेश में हों, वंदनीय होते हैं। यह संसार सौभाग्यशाली है जहाँ त्यागी संत उपस्थित हैं। जिसके पास संतोष धन आ जाता है, उसके पास सभी सुख आ जाते हैं — वह सबसे बड़ा सुखी होता है। गृहस्थ भी जितना संभव हो, प्रतिदिन धर्म के लिए समय निकालें। गृहस्थ में रहते हुए भी कमलपत्र की तरह निर्लेप रहें। यदि घर में भी संतपुरुष की भांति जीवन जिया जाए, तो यह जीवन भी सफल हो सकता है और परलोक भी। मन में धर्म और आध्यात्मिकता की भावना रहे। शुद्ध वीतराग आत्मा का स्मरण करते रहें। यह मानव जीवन हमें अनमोल रूप में प्राप्त हुआ है — इसका सदुपयोग करें। क्षमा, करुणा और दया की भावना रखें। पूज्यवर ने स्थानीय लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति — इन तीन प्रतिज्ञाओं को समझाकर संकल्प दिलवाए। पूज्यवर के स्वागत में एम.बी. हाईस्कूल के प्रिंसिपल किरीटभाई पटेल, मंत्री बाबुभाई पटेल और शाहपुर प्राथमिक विद्यालय के महेशभाई रावल ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।