कर्म करता है कर्त्ता का  अनुगमन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सुद्रासणा। 21 मई, 2025

कर्म करता है कर्त्ता का अनुगमन : आचार्यश्री महाश्रमण

भैक्षवगण सरताज आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मेहसाणा जिले के उंढाई से मंगल प्रस्थान कर साबरकांठा जिले में मंगल प्रवेश किया। पूज्यवर लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर सुद्रासणा स्थित बी.एच. गरड़ी हाईस्कूल प्रांगण में पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि उत्तरज्झयणाणि आगम में कहा गया है कि किये हुए कर्मों से छुटकारा नहीं मिलता, उनको भोगना ही पड़ता है। तपस्या से कुछ निर्जरण हो सकता है। व्यक्ति जैसा कर्म करेगा, वैसा फल प्राप्त करेगा। कर्मवाद का मूल है - जैसी करणी, वैसी भरणी। जैन दर्शन में आठ कर्म बताये गये हैं। हमारा जीवन इन आठ कर्मों की उदय या विलय रूप में निष्पत्ति है। संसारी प्राणियों के तो कर्मों का जाल बिछा हुआ है। इस जाल से मुक्त होना हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
आठ कर्मों में सबसे मुख्य मोहनीय कर्म है। पाप कर्म कराने में मोहनीय कर्म का भी योगदान है। हम किसी का बुरा चाहेंगे तो सामने वाले का बुरा हो या न हो, पर किसी का बुरा चाहने वाला स्वयं का बुरा अवश्य कर लेता है। भला करने वाले का भला ही होता है। हमें किसी के प्रति बुरे भाव नहीं लाने चाहिये। सबके साथ धर्म का आचरण करना चाहिये। पूज्यवर के स्वागत में हाईस्कूल के प्रमुख लीलाचन्द भाई सेठ, महेश भाई, गांव के सरपंच कांति ठाकुर ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।