शत्रु के प्रति भी ना हो अहित का चिंतन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

उम्मेदगढ़। 22 मई, 2025

शत्रु के प्रति भी ना हो अहित का चिंतन : आचार्यश्री महाश्रमण

संयम कवच प्रदान करने वाले निस्पृह साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 12 किमी का विहार कर उम्मेदगढ़ के जे. एम. पटेल हाईस्कूल के प्रांगण में पधारे। ज्ञान की अमृत धारा बहाते हुए परम पावन ने फरमाया कि प्राणियों के साथ मैत्री करें। \दुनिया में युद्ध चलते हैं, आपसी लड़ाई-झगड़े भी चलते हैं। व्यक्ति के भीतर वृत्तियाँ चलती हैं, आक्रोश की वृत्ति भी होती है। जब ये क्रोध, मान, माया, लोभ सुषुप्त अवस्था में होते हैं, तो गुस्सा नहीं आता। जब ये उत्तेजित हो जाते हैं, तो प्राणी गुस्सा कर सकता है।
जहाँ मैत्री है, वहाँ गुस्सा नहीं है। जिसके साथ प्रीति होती है, उसके प्रति गुस्सा भी आ सकता है, पर वह गुस्सा हितकर हो सकता है। प्रीति से जुड़ा गुस्सा हितकर होता है। वीतराग बनने के लिए गुस्से को छोड़ना पड़ेगा। सब प्राणियों के साथ मैत्री है, तो वे सब हमारे मित्र हैं। किसी को नहीं मारूंगा — यह मित्रता की न्यूनतम सीमा है। किसी का कल्याण कर सकें या न कर सकें, पर संकल्पपूर्वक किसी को नहीं मारें। जानबूझकर किसी का अहित न करें। मैत्री भाव प्रतिदिन बढ़ता जाए। कोई दुश्मन है, उसको भी मित्र मान लेना कठिन कार्य होता है, किन्तु उसका अहित न करने का चिंतन
भी मित्रता की बात हो सकती है। कहा तो यह गया है कि किसी को शत्रु ही नहीं मानें। व्यवहार नय से कोई मित्र या शत्रु हो सकता है, पर निश्चय नय से तो हमारी आत्मा ही हमारा मित्र या शत्रु होती है। स्वयं की अहिंसा स्वयं के लिए कल्याणकारी होती है। कहीं विरोध भी हो तो उसे विनोद मान लेना चाहिए। उदारता, गुरुता और महानता का भाव रखें। शांति से जीवन जिएं, अच्छा आध्यात्मिक कार्य करें। हमारी मैत्री-भावना पुष्ट होती रहे। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने भी अहिंसा यात्रा की थी। वे गुजरात भी पधारे थे। उत्तर गुजरात में धर्म की भावना प्रवर्धमान होती रहे। विद्यालयों में भी विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार बढ़ते रहें। पूज्यवर के स्वागत में विद्यालय के प्रमुख हितेन्द्रभाई पटेल एवं प्रधानाध्यापक भानुप्रसाद पटेल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।