जप एवं तप की निष्पत्ति है — समाधि मरण

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शासनश्री साध्वी यशोधरा

जप एवं तप की निष्पत्ति है — समाधि मरण

वीतराग कल्प महातपस्वी, करुणा कुबेर आचार्य श्री महाश्रमण जी की वात्सल्यमयी छत्रछाया में साध्वी संचितयशा जी अपनी संयम-यात्रा में बड़ी सजगता से यात्रायित थीं। वे प्रबुद्ध, विनम्र, व्यवहार-कुशल, उपशांत कषाय, संघपति के प्रति समर्पित, मर्यादा-निष्ठ, ऋजुमना साध्वी थीं। जीवन भर जपे हुए जप एवं तपे हुए तप की निष्पत्ति है — अनशनपूर्वक समाधि मरण का वरण। साध्वी शकुन्तला जी की निश्रा में, इंगियागार संपन्न साध्वी संचितयशा जी ने शौर्य, वीर्य एवं पराक्रम से अनशनपूर्वक समाधि मरण का वरण किया है। विलेपार्ले तीर्थभूमि बन गई है। दिवंगत पवित्रात्मा की चेतना के ऊर्ध्वरोहण की मंगल कामना करती हूँ — निकट भव में वे सिद्धश्री का वरण करें।