संयम-जीवन पर कलश है संथारा

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शासनश्री साध्वी शिवमाला, टमकोर

संयम-जीवन पर कलश है संथारा

शासनश्री साध्वी सोमलता जी की सेवा में, साध्वी शकुन्तला कुमारी जी दायें हाथ के रूप में और साध्वी संचितयशा जी बायें हाथ के रूप में सेवा करती हुईं अग्रणी के इंगित-आराधना में अत्यंत जागरूक थीं। साध्वी संचितयशा जी प्रबुद्ध युवा साध्वी थीं, जो आचार्य श्री महाश्रमण जी के युग में संयम की साधना कर रही थीं। संस्था में प्रवेश से पूर्व उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में डबल एम.ए. किया था। वे हस्तकला में निपुण थीं और अनेक प्रकार की कलाओं में दक्षता प्राप्त की थी। कुछ महीनों पूर्व ज्ञात हुआ कि साध्वी संचितयशा जी का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है और वे पुनः मुंबई आ गई हैं। मन में उमंग थी कि विलेपार्ले जाकर साध्वी शकुन्तला कुमारी जी से मिलूं और साध्वी सोमलता जी के संवादों से अवगत हो जाऊं। परंतु अचानक सूचना मिली कि साध्वी संचितयशा जी ने संथारा स्वीकार कर लिया है। सायं प्रतिलेखना कर रही थी तब एक बहन ने आकर बताया कि साध्वी संचितयशा जी का संथारा सीझ गया है। प्रबल पुण्याई से भिक्षु शासन में उन्हें संयम रत्न प्राप्त हुआ। गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी, युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी तथा वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण जी की छत्रछाया में उन्हें अनहद कृपा प्राप्त हुई। साध्वी शकुन्तला कुमारी जी आदि साध्वियों की सेवा कर उन्होंने भिक्षु शासन के गौरव को बढ़ाया। संथारा संयम-जीवन पर कलश है, संयम-जीवन की एक विशिष्ट उपलब्धि है। साध्वी संचितयशा जी की आत्मा उत्तरोत्तर विकास करती हुई शीघ्र मोक्ष के निकट पहुंचे।