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अद्भुत था विनम्र स्वभाव और समर्पण भाव
साध्वी संचितयशा जी ने गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी से संयम रत्न स्वीकार कर अपने जीवन को साधना के पथ पर आगे बढ़ाया। शासनश्री साध्वी सोमलता जी के सान्निध्य में आपने खूब विकास किया। प्रतिभा सम्पन्न होते हुए भी आपका विनम्र स्वभाव और समर्पण भाव अद्भुत था। अचानक वेदनीय कर्म का उदय हुआ और शरीर जवाब देने लगा। आपने संथारे का प्रत्याख्यान कर दृढ़ मनोबल का परिचय दिया, और बहुत शीघ्र ही अनशन पूर्ण भी हो गया। यह आपके जीवन की सार्थकता है। हम सभी आपके आत्मिक विकास की मंगलकामना करते हैं। साध्वी शकुंतलाश्री जी, साध्वी जागृतप्रभा जी और साध्वी रक्षितयशा जी ने आपको चित्त समाधि तक पहुंचाया है। स्मृतियों के झरोखे में लगभग एक वर्ष पूर्व के मलाड प्रवास के वे क्षण अविस्मरणीय हैं। साध्वी संचितयशा जी की आत्मा शीघ्र ही मोक्षश्री का वरण करे — हार्दिक मंगलकामना।