कर्मठ, निर्जरार्थी और स्वाध्यायप्रिय साध्वी

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साध्वी निर्वाणश्री आदि साध्वी वृंद

कर्मठ, निर्जरार्थी और स्वाध्यायप्रिय साध्वी

प्रबुद्ध, शांत, सौम्य एवं इन्द्रिय-निग्रह सम्पन्न साध्वी संचितयशा जी को लगभग 35 वर्ष पूर्व गुरुदेव श्री तुलसी के कर-कमलों से दीक्षित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गुरुकुलवास में कुछ समय तक साथ में रहे। उस समय मैंने उनको एक कर्मठ, निर्जरार्थी और स्वाध्यायप्रिय साध्वी के रूप में देखा। वे दो दशकों से भी अधिक समय तक स्व. शासनश्री साध्वी सोमलता जी के ग्रुप में अभेदभाव से रहीं। उन्होंने रूग्णावस्था में साध्वीश्री की परिचर्या के लिए अपने आपको नियोजित किया। वर्तमान में वे साध्वी शकुंतला जी की सहवर्ती के रूप में थीं।
वे मार्ग में सूरत प्रवास के दौरान आकस्मिक रूप से अस्वस्थ हो गईं। स्वास्थ्य लाभ के लिए पुनः मुंबई में आना हुआ। उपचार के पश्चात वे एक बार के लिए स्वस्थ भी हो गईं, और पुनः अस्वस्थता की चपेट में आ गईं। उन्होंने शांति व समता के साथ तीव्र वेदना को सहा। अंत में अनशन स्वीकार कर अपना अंतिम मनोरथ भी पूरा कर लिया। साध्वी शकुंतला जी, जागृतयशा जी, रक्षितयशा जी ने मनोयोगपूर्वक उनकी सेवा की। सभी साध्वियां अपना मनोबल दृढ़ से दृढ़तर रखें। नंदनवन (मुंबई) प्रवास में उनके साथ बिताए गए क्षणों को साध्वी योगक्षेमप्रभा जी आदि सभी साध्वियां समय-समय पर याद करती रहती हैं। दिवंगत आत्मा के आध्यात्मिक विकास की अनेकशः मंगलकामनाएं।