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अक्षय तृतीया पर श्रद्धासिक्त कार्यक्रम
आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या ‘शासनश्री’ साध्वी मानकुमारी जी के सान्निध्य में अक्षय तृतीया महोत्सव आयोजित किया गया। इस अवसर पर कांता जैन गुलगुलिया के द्वितीय वर्षीतप का अभिनंदन किया गया। साध्वी वृंद द्वारा मंगलाचरण से शुरू हुए कार्यक्रम में ‘शासनश्री’ साध्वी मानकुमारी जी ने तप अनुमोदना करते हुए कहा - भगवान ऋषभ का कर्तृत्व व व्यक्तित्व अपने आप में अनुपम है। ऋषभ इस पृथ्वी के प्रथम राजा बनकर इस सृष्टि के व्यवस्था सूत्र के प्रथम सूत्रधार थे। सम्राट से सन्यस्त हुए और संयम जीवन स्वीकार किया। उस समय के लोग सीधे सरल थे। बैलों का मुंह 12 घंटे बंधे रहने के कारण भगवान ऋषभ को 12 महीने तक भिक्षा नहीं मिली। लंबी तपस्या हो गई। लोग भिक्षा विधि से अनजान थे। प्रपौत्र श्रेयांस ने जाति स्मरण ज्ञान से सब जाना और इक्षुरस का सुपात्र दान देकर ऋषभ भगवान का पारणा करवाया। वह दिन था वैशाख शुक्ला तृतीया और वह अक्षय तृतीया बन गई। अक्षय तृतीया का यह पर्व हमें सुपात्र दान देने की प्रेरणा देता है जिसे देकर हम भव परंपरा से मुक्त हो सकते हैं। सचमुच ऋषभ सभ्यता और संस्कृति के विकास पुरुष थे। वर्षीतप करने से इंद्रिय संयम के साथ-साथ अनासक्त चेतना का विकास होता है। वर्षीतप की अनुमोदना करते हुए साध्वीश्री जी ने श्रावक-श्राविकाओं को वर्षीतप करने की प्रेरणा दी। इस अवसर पर ज्ञानशाला के बच्चों और कन्या मंडल ने 'सबसे श्रेष्ठ जैन धर्म' नाटिका की सुंदर प्रस्तुति दी। साध्वी कीर्तिरेखा जी, साध्वी वृंद, महिला मंडल, मोनिका बैद, मंजू दुगड़, प्रेमरतन पांडे ने सारगर्भित वक्तव्य और गीतों के माध्यम से भगवान ऋषभ का गुणगान किया। वर्षीतप करने वाली बहन कांता का तेरापंथ सभा व महिला मंडल द्वारा अभिनंदन किया गया। आभार ज्ञापन सभा के मंत्री कमल दुगड़ ने किया। साध्वी इंदुयशा जी ने कार्यक्रम का कुशल संयोजन किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति रही।