अक्षय तृतीया पर श्रद्धासिक्त कार्यक्रम

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अक्षय तृतीया पर श्रद्धासिक्त कार्यक्रम

भगवान ऋषभदेव के पुण्यस्मरण, दान की भावना और वर्षीतप की पूर्णाहुति को समर्पित अक्षय तृतीया समारोह का आयोजन कच्छी भवन, रामकोट, हैदराबाद में भव्य रूप से सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर 13 वर्षीतप साधकों की अनुमोदना की गई और दो दंपत्ति जोड़ों ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का भी संकल्प लिया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी डॉ. गवेषणाश्री ने कहा कि आज का दिन भगवान ऋषभदेव की स्मृति में पुण्यदायक है। इक्षुरस, सुपात्र दान और ऋषभदेव का संयोग अक्षय तृतीया के दान की महिमा को प्रतिष्ठित करता है। उन्होंने कहा कि भौतिकता का त्याग ही शाश्वत सुख-शांति की ओर ले जाता है। जो कर्मशूर होता है, वही धर्मशूर बनता है। भगवान ऋषभदेव ने असि, मसि, कृषि और 72 कलाओं का प्रशिक्षण देकर कला, संस्कृति और विज्ञान की नींव रखी। उन्होंने सामाजिक व्यवस्था स्थापित की और संयम पथ की ओर अग्रसर हुए। साध्वीश्री ने आदिनाथ की शिक्षा को 'आध्यात्मिक वसीयत' बताते हुए कहा कि जैसे माता-पिता बच्चों के लिए वसीयत छोड़ते हैं, वैसे ही आदिनाथ ने शिक्षा दी कि कर्मों का भुगतान आत्मा को स्वयं करना होता है। उन्होंने बताया कि 12 घड़ी के अंतराय ने ऋषभदेव को 12 महीने के अंतराय का फल दिलाया। इसलिए सत्कर्मों का अर्जन आवश्यक है। तपस्वियों के प्रति मंगलकामना व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जो पतन से बचाए, वही तप है। उन्होंने सुंदर स्वरचित गीत के माध्यम से उपस्थित साधकों को आध्यात्मिक संदेश दिया और भगवान की तरह कर्मशूर बनने और इच्छाओं को कम करने का आह्वान किया। साध्वी मयंकप्रभा ने कहा कि अक्षय तृतीया का महत्त्व जैन ही नहीं, अपितु अन्य धर्मों में भी है — जैसे गंगा अवतरण, कृष्ण-सुदामा मिलन और परशुराम जन्म जैसे प्रसंग इसी दिन से जुड़े हैं।
साध्वी दक्षप्रभा ने सुमधुर गीतिका द्वारा तपस्वियों का अभिनंदन किया। सिकंदराबाद सभा अध्यक्ष सुशील संचेती ने स्वागत भाषण में भगवान आदिनाथ के जीवन-दर्शन से प्रेरणा लेने की बात कही। महिला मंडल सहमंत्री शीतल सांखला, तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष अभिनंदन नाहटा, प्रोफेशनल फोरम अध्यक्ष वीरेंद्र घोसल तथा तपस्वियों के परिजन ने भी श्रद्धा स्वर प्रस्तुत किए।