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“मातृ-पितृ देवो भव” कार्यक्रम का हुआ भव्य आयोजन
तेरापंथी सभा के तत्वावधान में ओसवाल भवन के विशाल प्रांगण में "मातृ-पितृ देवो भव" कार्यक्रम का भव्य आयोजन साध्वी अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में समाजजनों की विशाल उपस्थिति देखने को मिली। साध्वी अणिमाश्रीजी ने अपने संबोधन में माँ की महिमा का भावपूर्ण वर्णन करते हुए कहा, “माँ करुणा का मंगलकलश है, ममता का महाकाव्य है। इस धरती पर माँ जैसा कोई नहीं, जो लातें खाकर भी दूध पिलाए। एक समय था जब माँ थाली हाथ में लेकर बेटे के पीछे-पीछे घूमती थी, आज वही माँ बेटे के हाथ से निवाला पाने को तरस रही है। माँ ब्रह्मा है क्योंकि वह सृजन करती है, विष्णु है क्योंकि पालन करती है, और महेश है क्योंकि बुरे संस्कारों का नाश करती है।” उन्होंने भगवान महावीर के ठाणं सूत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि माँ-बाप का ऋण चुकाना संभव नहीं, लेकिन उनका सम्मान और सेवा करके हम अपने कर्तव्य की पूर्ति कर सकते हैं।
डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी ने पिता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “माता-पिता जीवन का प्रथम रिश्ता है, उसके बाद ही अन्य रिश्तों का सिलसिला प्रारम्भ होता है। पिता रोटी, कपड़ा, मकान है, छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है। पिता द्वारा दी हुयी नसीहत को संभलकर रखें तो आपका जीवन शानदार व चमकदार बन जाएगा। कार्यक्रम में साध्वी कर्णिकाश्रीजी ने कविता के माध्यम से माँ की ममता का सुंदर गुणगान किया। साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने मंगल संगान प्रस्तुत किया, जबकि मंच संचालन साध्वी समत्वयशाजी ने किया।