संयम साधना के शिखर पुरुष हैं आचार्य श्री महाश्रमण

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बीदासर।

संयम साधना के शिखर पुरुष हैं आचार्य श्री महाश्रमण

बीदासर। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की विदुषी शिष्याएँ—'शासनश्री' साध्वी यशोमतीजी, 'शासनश्री' साध्वी साधनाश्रीजी, 'शासनश्री' साध्वी अमितप्रभाजी एवं बीदासर केन्द्र की व्यवस्थापिका साध्वी मंजुयशाजी के सान्निध्य में आचार्यश्री महाश्रमणजी के जन्मोत्सव, पट्टोत्सव एवं दीक्षा दिवस—तीनों का उत्सव ‘महाश्रमण अभिवंदना समारोह’ का कार्यक्रम बड़े ही उत्साहपूर्वक मनाया गया।कार्यक्रम का प्रारंभ साध्वीश्री के नमस्कार महामंत्र के मंगल उच्चारण से हुआ। साध्वी स्तुतिप्रभाजी एवं साध्वी मानसप्रभाजी ने महाश्रमण अष्टकम् का मधुर संगान किया। साध्वीश्री ने अपने आराध्य के प्रति मंगलकामना के सुमन समर्पित करते हुए कहा—"भव्य ऋषि परंपरा में अनेक ऋषि महान हुए हैं। उन्होंने अपनी त्याग, तपस्या एवं प्रखर साधना से इस पुण्य धरा को अध्यात्ममय बनाया है। वर्तमान समय में भी अनेक त्यागी तपस्वी संतों की अपनी प्रखर साधना से जन-जन को अध्यात्म का पावन संदेश मिल रहा है। उन्हीं संत महात्माओं की श्रृंखला में एक पवित्र आत्मा का नाम है—आचार्य महाश्रमण।"
मात्र 12 वर्ष की उम्र में संन्यास पथ पर अग्रसर हो गए। संयम स्वीकार करने के बाद आप अपनी साधना में रमण करते हुए बड़ी जागरूकता से आगे बढ़ते गए। आपकी सहनशीलता, विनयशीलता, श्रमशीलता, स्वाध्यायशीलता, संयम साधना के प्रति जागरूकता, स्थिरता, धैर्य, गंभीरता, समर्पण भाव, निष्ठा पंचक, आदि विरल विशेषताओं ने गुरु के दिल में एक विशेष स्थान बनाया। आपके इस उज्ज्वल व्यक्तित्व का अंकन करते हुए आचार्य श्री तुलसी ने आपको मुनि मुदित से "महाश्रमण" बनाया। आचार्य श्री महाप्रज्ञाजी ने आपकी योग्यता को देख ‘युवाचार्य महाश्रमण’ बनाया और फिर आप आचार्य महाश्रमण बने। साध्वियों ने उन्हें अनेक विशेषताओं का पुंज बताया। उन्होंने आगे कहा—"आपने लोक कल्याण हेतु करीब 60,000 किलोमीटर की पदयात्रा कर नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति के अभियान से लाखों व्यक्तियों को प्रेरणा देकर उनके जीवन को सही दिशा में प्रशस्त किया।"
इस अवसर पर साध्वी विमलप्रभाजी, साध्वी जयन्तयशाजी, साध्वी इंदुप्रभाजी, साध्वी ऋजुप्रभाजी, साध्वी मानसप्रभाजी, साध्वी स्तुतिप्रभाजी आदि ने आचार्य महाश्रमण के विराट व्यक्तित्व के बारे में सामूहिक रूप में एक रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिसका शीर्षक था—"स्पेशल डे, गॉड डे"। इसमें ज्ञानशाला के बच्चे भी शामिल थे। साध्वियों द्वारा अपने आराध्य को एक मधुर गीत के माध्यम से मंगलकामनाएं प्रेषित की गईं। अठ्ठारह वक्ताओं ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन साध्वी चिन्मयप्रभाजी ने किया।