
गुरुवाणी/ केन्द्र
सभी प्राणियों को समझें आत्मतुल्य : आचार्यश्री महाश्रमण
आत्मा एक अमूर्त तत्व है, जिसे इन्द्रियों से न तो देखा जा सकता है, न ही अनुभव किया जा सकता है, किंतु वही अध्यात्म की नींव है। आत्मा के सिद्धांत पर ही सम्पूर्ण आध्यात्मिक भवन टिका हुआ है। संसार में दो प्रकार के द्रव्य होते हैं—मूर्त और अमूर्त। जिसमें वर्ण, रूप, रस, गंध, स्पर्श हो वह मूर्त और जिसमें ये सभी नहीं होते, वे अमूर्त होते हैं। जो आंखों से दिखाई देते हैं, सभी पुद्गल होते हैं। आत्मा इन्द्रियों के लिए ग्राह्य नहीं है। आत्मा अशोष्य, अमूर्त, शाश्वत, अकाट्य और अदाह्य तत्व है। आत्मा को गलाया, भिंगोया, सुखाया या जलाया नहीं जा सकता है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है, जब तक उसे मोक्ष नहीं मिल जाता। जिस प्रकार आदमी पुराने कपड़ों को छाड़ता है, आत्मा उसी प्रकार पुराने और जीर्ण-शीर्ण शरीर को छोड़कर नए शरीर में प्रवेश कर जाती है।
छः द्रव्यों में से केवल पुद्गल द्रव्य मूर्त है, शेष पांच द्रव्य अमूर्त हैं। पूज्यवर ने एक उदाहरण के माध्यम से कहा कि जब हवा और सुगंध को भी हाथ में पकड़कर नहीं दिखाया जा सकता, तो आत्मा जैसे अमूर्त तत्व को इन्द्रियों से जानना असंभव है। उपरोक्त पावन प्रेरणा पाथेय जिनवाणी के महान प्रवक्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मेघरज के श्री पी.सी.एन. हाईस्कूल में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किया। पूज्यवर ने आत्मा के गुणों पर प्रकाश डालते हुए आगे फरमाया कि आत्मा अमर है, शरीर नश्वर है। कर्मों के कारण आत्मा दु:खी बन जाती है, क्योंकि उसमें राग, द्वेष और कषाय जैसे दोष जुड़ जाते हैं। जब ये दोष छूटते हैं, तब आत्मा परम लक्ष्य अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर सकती है। यही मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है।
पूज्यवर ने कहा, 'हम क्रियावादी हैं और आत्मा उसका मूल आधार है। हमें सभी प्राणियों को आत्मतुल्य समझना चाहिए। जैसा सुख हमें प्रिय है, वैसा ही सुख सबको प्रिय है। इसलिए किसी भी जीव को दुख न पहुँचाएं।' इस अवसर पर साध्वीप्रमुखाश्री जी ने धर्म के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म वह है, जिससे व्यक्ति का अभ्युदय और कल्याण होता है। धर्म चित्त की शुद्धि और शांति का मार्ग है, किंतु राग-द्वेष और कषाय धर्म की राह में व्यवधान बनते हैं। इनसे मुक्त होकर ही मोक्ष की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। अपनी वैराग्यभूमि में मुनि कोमलकुमारजी ने आराध्य के स्वागत में हृदयोद्गार व्यक्त किए। कार्यक्रम में तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल और ज्ञानशाला द्वारा भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई। मेघरज सभाध्यक्ष लादुलाल माण्डोत, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष निलेश गांधी ने अपने भाव प्रकट किए। मुनि कोमलकुमारजी के संसारपक्षीय ज्ञातिजन बाबूलाल दक व निलेश दक ने अपनी अभिव्यक्ति दी। बालिका जैन्सी दक व यशवी कोठारी ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी द्वारा किया गया।