समय का आध्यात्मिक रूप से प्रबंधन करना भी है महत्वपूर्ण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोडासा। 29 मई, 2025

समय का आध्यात्मिक रूप से प्रबंधन करना भी है महत्वपूर्ण : आचार्यश्री महाश्रमण

तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 10 किमी का विहार कर मोडासा के बाहर स्थित जीरावला लब्धि विक्रम धाम में पधारे। परम पावन ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन दर्शन में षट्द्रव्य का सिद्धांत है। यदि कोई पूछे कि यह लोक, यह दुनिया क्या है, तो उसका उत्तर है—'षट्द्रव्यात्मक लोकः'। इस लोक में छह द्रव्य होते हैं, जिनमें चौथा द्रव्य है—काल। काल अर्थात समय भी एक द्रव्य है। समय सभी को समान रूप से प्राप्त होता है, किंतु प्रश्न यह है कि इसका उपयोग कौन, किस प्रकार करता है। समय का उत्तम, सामान्य या निम्न स्तर पर उपयोग कैसे किया जा सकता है, यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति समय का श्रेष्ठ उपयोग करता है, वही श्रेष्ठ व्यक्ति कहलाता है।
हमें दिन-रात में 24 घंटे मिलते हैं। आवश्यक कार्यों के अतिरिक्त शेष समय प्रायः व्यापार या अन्य सांसारिक कार्यों में व्यतीत हो जाता है। यदि प्रत्येक घंटे में से 2-2 मिनट निकाले जाएं, तो 48 मिनट में एक सामायिक की जा सकती है। अतः कुछ समय तो अपनी आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के लिए भी अवश्य निकालना चाहिए। यदि हम कर्म के लिए समय निकाल सकते हैं, तो धर्म के लिए भी समय निकालना चाहिए। जो समय बीत जाता है, वह लौटकर नहीं आता, इसलिए आने वाले समय का सदुपयोग करें। व्यस्त होना बुरा नहीं, किंतु अस्त-व्यस्त होना उचित नहीं है। मन में शांति और प्रसन्नता बनी रहे; तनाव से दूर रहकर हम अपने सभी कार्यों को भली-भांति संपन्न कर सकते हैं। गृहस्थों का भी कुछ समय धर्म के लिए अवश्य नियोजित हो।
ज्ञानी व्यक्ति अपने ज्ञान के अभ्यास के लिए समय निकाल लेता है। अपने प्रत्येक कार्य को समय पर करने का प्रयास करना चाहिए। सभी को अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहना चाहिए। यदि समय का सदुपयोग हो, तो जीवन उत्तम बन सकता है। पूज्यवर ने स्मरण कराया कि परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी सन् 1983 में मोडासा पधारे थे। लंबे अंतराल के बाद पुनः आगमन हुआ है। यहां धार्मिकता निरंतर पुष्ट होती रहे। कार्यक्रम में तेरापंथ महिला मंडल द्वारा स्वागत गीत की प्रस्तुति दी गई। ज्ञानशाला की 25 बोल पर सुंदर प्रस्तुति हुई। पूज्यवर के स्वागत में मोडासा सभा के अध्यक्ष गौतम कोठारी, सुमेरमल जैन, सुरेश कोठारी आदि ने अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कीं। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।