
गुरुवाणी/ केन्द्र
ज्ञान और प्रत्याख्यान से जीवन में होता है उजाला : आचार्यश्री महाश्रमण
विश्व की महान आध्यात्मिक विभूति, तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी मोडासा के बहरी क्षेत्र से नगर के श्री एच. एल. पटेल सरस्वती विद्यालय प्रांगण में पधारे। नगर के विभिन्न स्थलों पर श्रावक समाज ने भावपूर्ण दर्शन-सेवा कर पूज्यवर का स्वागत किया। जिनवाणी की अमृत वर्षा करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का अत्यंत महत्व है। अज्ञान रूपी अंधकार को केवल ज्ञान रूपी प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है। ज्ञान एक प्रकार की ज्योति और अग्नि है, जिससे जीवन में स्पष्टता, विवेक और दिशा आती है।
आचार्यश्री ने कहा कि आज दुनिया भर के शैक्षणिक संस्थानों में विद्यार्थियों को ज्ञान प्रदान किया जा रहा है। ज्ञान एक अमूल्य सम्पदा है। पढ़ने और सुनने से ज्ञान प्राप्त होता है। धर्मगुरुओं और संतों के प्रवचनों से भी व्यक्ति आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान अर्जित कर सकता है। सुनकर मनुष्य कल्याणकारी और पापकर्मों का अंतर समझता है और जो श्रेयस्कर है, उसे अपनाता है। सम्यक् ज्ञान हो जाए और वह जीवन में उतर जाए तो जीवन कितना अच्छा हो सकता है।
पूज्यवर ने जीवन के दो प्रकार के सुखों का उल्लेख किया—तात्कालिक (इन्द्रियजन्य) सुख और शाश्वत (आध्यात्मिक) सुख। शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श-ये पांच विषय हैं। पांच इन्द्रियों के ये पांच विषय हैं। इनके द्वारा भौतिक सुख अथवा तात्कालिक सुख की प्राप्ति हो सकती है। अभौतिक, अलौकिक और आध्यात्मिक सुख आंतरिक होता है। पदार्थों से मिलने वाला सुख क्षणिक सुख होता है। साधु जीवन कठोर होते हुए भी प्रसन्नता से परिपूर्ण होता है, क्योंकि उसमें त्याग और शांति का समावेश है। जबकि गृहस्थ भौतिक साधनों से युक्त होकर भी भीतर से अशांत रहता है। भौतिक साधनों से सुविधा मिल सकती है, परंतु शांति केवल साधना से ही प्राप्त होती है। इसलिए आदमी को पापों से विरत रहकर आध्यात्मिक सुख प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
पूज्यवर ने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि जीवन का लक्ष्य केवल अंक प्राप्त करना नहीं, बल्कि ज्ञान और संस्कार अर्जित करना होना चाहिए। आत्मविश्वास और परिश्रम से सफलता प्राप्त करें। वरदान से नहीं, परिश्रम से पास हों, यही असली उपलब्धि है। ज्ञान का दीप सदा प्रज्वलित रहना चाहिए।
विद्यालयों में शिक्षा के साथ नैतिकता, ईमानदारी, अहिंसा और नशामुक्ति के भाव भी सिखाए जाने चाहिएं। अच्छे संस्कारों से सुसज्जित बच्चे ही उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। जीवन विज्ञान के माध्यम से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास संभव है। पूज्यवर ने जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए सूत्र रूप में प्रेरणा दी: 'अच्छा सोचें, अच्छा देखें, अच्छा सुनें, अच्छा बोलें और अच्छा करें, तो जीवन अच्छा हो सकता है।' पूज्यवर के स्वागत में भार्गव चावत, अनिता छाजेड़, डॉ. दिव्य शाह, उमा चावत, मुस्कान जैन, बालक विधान भंसाली व भव्य शाह, मोनिका हिरण, विद्यालय उपप्रमुख हरिभाई पटेल, नगरपालिका अध्यक्ष नीरजभाई शेठ आदि ने अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कीं। भंसाली व चावत परिवार के सदस्यों ने अपनी प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला के बच्चों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।