
गुरुवाणी/ केन्द्र
मन की चंचलता रोकने के लिए ध्यान है सशक्त माध्यम : आचार्यश्री महाश्रमण
जन-जन के तारणहार आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 11 किमी का विहार कर उम्मेदपुर में स्थित गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री अरुण पटेल के निवास स्थान में पधारे। स्थानीय पटेल समाज सहित बड़ी संख्या में लोगों ने पूज्यवर का भावपूर्वक स्वागत एवं अभिवंदन किया। उपस्थित विशाल परिषद को संबोधित करते हुए महामनीषी ने फरमाया कि हमारे जीवन में आत्मा नामक तत्व है और दूसरा तत्व है शरीर। आत्मा और शरीर का मिश्रित रूप ही हमारा वर्तमान जीवन है। आत्मा और शरीर में भेद है—आत्मा शाश्वत, अछेद्य और अदाह्य है, जबकि शरीर नश्वर है। हमें शरीर के साथ-साथ वाणी और मन भी प्राप्त हैं। शरीर से हम क्रियाएं करते हैं, वाणी से बोलते हैं और मन से चिंतन एवं कल्पना करते हैं। जैसे शरीर को सूक्ष्मता से जानना कठिन है, वैसे ही किसी के मन को जानना भी कठिन होता है।
मन एक ऐसा तत्व है, जो यदि दृढ़ बन जाए तो व्यक्ति शक्तिशाली बन सकता है। मनोबल की मजबूती भी जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है। मन में विचारों का आना उसकी चंचलता है, और कभी-कभी मलिनता भी। हमारा मन सकारात्मक और वास्तविक चिंतन कर सकता है, तो नकारात्मक भी। मन में इच्छाएं और आसक्तियां भी जन्म लेती हैं। मन वाले प्राणी ही अधिक पुण्य और पाप करते हैं, जबकि जड़ चेतना वाले प्राणी उतना पुण्य या पाप नहीं कर सकते।
मन की सबसे बड़ी समस्या है उसकी चंचलता। राग और द्वेष मन को चंचल बनाते हैं। संसार में सबसे बड़ा तत्त्व है—आकाश, सबसे कठिन कार्य है—स्वयं की पहचान करना। सबसे आसान कार्य है—दूसरों की निंदा करना, और सबसे गतिशील वस्तु है—मन। यदि हम जप-उपासना करें, तो उसका केंद्र मन होना चाहिए। मन में कलुषता आने से पापकर्म का बंध हो सकता है। संवर और निर्जरा की साधना से कर्मबन्धन से बचा जा सकता है।
पूज्यवर ने कहा कि संयम और तप से आत्मा निर्मल होती है। मन की चंचलता को रोकने के लिए ध्यान आवश्यक है। शरीर को स्थिर रखने का प्रयास करें, और श्वास पर मन को एकाग्र करें। हमारे संकल्प श्रेष्ठ हों। जीवन में सद्भावना, अहिंसा की भावना, नैतिकता, ईमानदारी और नशामुक्ति बनी रहे। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों से जीवन श्रेष्ठ बन सकता है।
हमने तो गृह त्याग कर संन्यास स्वीकार किया है। साधु वे होते हैं जो कंचन-कामिनी के त्यागी हों। यदि मोह-माया में अटक गए, तो साधु भी सिद्धि प्राप्ति में अटक सकते हैं। मन का लटकना, अटकना और भटकना नहीं होना चाहिए। जो कंचन-कामिनी से अनासक्त होता है, वही सच्चा त्यागी साधु होता है। संतों की संगति थोड़ी भी हो, तो वह भी कल्याणकारी होती है।
पूज्यवर ने स्थानीय निवासियों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के विषय में प्रेरित करते हुए संकल्प दिलवाए। पूज्यवर के स्वागत में स्थानीय कन्याओं ने गीत प्रस्तुत किया। ग्राम की ओर से अरुणभाई पटेल, कनुभाई पटेल और विशाल पटेल ने अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कीं। किशनलाल डागलिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।