
गुरुवाणी/ केन्द्र
गृहस्थ जीवन में कर्म के साथ जोड़ें धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी भिलोड़ा से लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर खेराड़ी गांव के खेराडी प्राथमिकशाला में पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि अध्यात्म जगत और जैन वाङ्मय में आत्मा का एक वाद, दर्शन और सिद्धांत है — जन्म-मरण और पुनर्जन्म तब तक होता रहता है जब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती। पुनर्जन्म का सिद्धांत आत्मवाद के सिद्धांत से जुड़ा हुआ है।
आत्मा का जन्म-मरण अनादिकाल से होता आ रहा है। अनंत समय से आत्मा जन्म-मरण के भ्रम में पड़ी हुई है। इसका कोई तो कारण होगा। प्रत्येक कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होता है, साथ में सहायक सामग्री भी हो सकती है। कारण के मूलतः दो प्रकार हैं – उपादान और निमित्त। आत्मा के जन्म-मरण का कारण हैं चार कषाय – क्रोध, मान, माया और लोभ। जब ये कषाय प्रवर्धमान होते हैं, तब आत्मा कलुषित होकर आगे से आगे जन्म-मरण करती रहती है। जब ये क्षीण हो जाते हैं, तब आत्मा का जन्म-मरण समाप्त हो जाता है। यह आस्तिकवाद का सिद्धांत है।
नास्तिकवाद में जन्म-मरण का सिद्धांत नहीं माना गया है। उनके अनुसार जो है, वही अंतिम है; आगे कुछ नहीं है। प्रश्न उठ सकता है कि आस्तिकवाद और नास्तिकवाद में से किसकी बात मानी जाए? यह एक संदेहात्मक विषय है, जिससे व्यक्ति अंतर्द्वंद्व में आ सकता है। यहां एक सलाह दी गई है कि हमें पुनर्जन्म, परलोक, पुण्य-पाप, और किए गए कर्मों का फल मानकर चलना चाहिए। पाप के कार्य मत करो, अच्छे कार्य करते रहो। यदि परलोक है, तो अच्छे कार्यों का अच्छा फल मिलेगा। और यदि परलोक नहीं भी है, तो भी अच्छा जीवन जीने से जीवन में शांति और संतोष रहेगा। इससे दोनों ओर से लाभ है।
पूज्यवर ने फरमाया कि आस्तिकवाद और नास्तिकवाद का अध्ययन किया जा सकता है, पर मेरा मानना है कि आस्तिकवाद के सिद्धांत को मानकर जीवन शैली अपनाएं। हम तो साधु हैं, हमारी साधुता का आधार आस्तिकवाद ही है। हर व्यक्ति संन्यासी बन जाए, यह कठिन है, परंतु अच्छा गृहस्थ अवश्य बनना चाहिए। जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रहें तो जीवन श्रेष्ठ बन सकता है। धर्म कहता है कि अहिंसा, संयम और तप को जीवन में सार्थक करो। किसी के साथ धोखाधड़ी मत करो। चोरी का धन मोरी में चला जाता है। आचरण में धर्म आना चाहिए। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों को जीवन में अपनाओ। जिस क्षेत्र में आप हों, वहां ईमानदारी रखें, अहिंसा और सद्भावना रखें। गृहस्थ जीवन में कर्म के साथ धर्म को जोड़ दिया जाए तो जीवन सुंदर और कल्याणकारी बन सकता है। पूज्यवर ने खेराड़ी के सरपंच सहित अच्छी संख्या में उपस्थित ग्रामवासियों को प्रेरणाएं प्रदान कीं। पूज्यवर के स्वागत में खेराड़ी के सरपंच अमृतभाई पटेल ने अपनी भावनाएं अभिव्यक्त कीं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।