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अध्यात्म चेतना के उन्नयन का नाम है साध्वी कीर्तियशा
कहते हैं, जीवन में आपसे कौन मिलेगा — यह समय तय करेगा। जीवन में आप किससे मिलेंगे — यह आपका दिल तय करेगा, पर जीवन में आप किन-किन के दिल में बने रहेंगे — यह आपका व्यवहार तय करेगा। व्यक्ति का व्यवहार ही उसे ऊँचाई तक पहुँचाता है।
परमपूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद व कृपा से अणुप्रत भवन, दिल्ली में साध्वी कीर्तियशाजी हमारे साथ भिन्न समाचारी में रहीं। जिंदगी में पहली बार उन्हें निकट से देखने का अवसर मिला। उनकी सहजता, सरलता, पापभीरुता मन को आकर्षित करने वाली थी। उनके चेहरे की प्रसन्नता व निर्मलता देखकर कोई भी यह अंदाज़ नहीं लगा सकता था कि वे असाध्य बीमारी से ग्रस्त हैं। उनकी आध्यात्मिक चेतना का उन्नयन ही उन्हें आध्यात्मिक चिकित्सा के लिए उत्प्रेरित कर रहा था। उनका मधुर व्यवहार और अच्छा स्वभाव हर व्यक्ति के मन में सम्मानपूर्ण स्थान बनाने जैसा था। उनकी भेदविज्ञान की साधना ने उन्हें अभय बना दिया — ऐसा हमें उन चार दिनों के सह-प्रवास में अनुभव हुआ।
उनकी अपने आचार एवं संयम के प्रति सजगता, गुरु एवं गण के प्रति निष्ठा अभिनंदनीय थी। वेदना में प्रवर्धमान उनकी समता देखकर मन गद्गद् हो गया। जब भी उनसे बात हुई, तब लगा कि उनकी सोच सकारात्मक है और शब्द-शब्द में गुरुदेव के प्रति अहोभाव के साथ कृतज्ञता सूचक भाव उनकी विनम्रता और सहज समर्पण को प्रकट कर रहे थे।
जब हमने सुना कि पूर्ण सचेतन अवस्था में गुरु आज्ञा से उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमार जी से तिविहार अनशन स्वीकार कर लिया है — सचमुच मृत्युंजय पथ पर अपने चरणों को गतिमान करके उन्होंने मृत्यु को महोत्सव बनाकर स्वयं को धन्य बना लिया। साध्वी मल्लिकाश्रीजी का प्रारंभ से अंतिम श्वास तक आत्मीय सहयोग मिला। दिवंगत आत्मा के आध्यात्मिक विकास की मंगल कामना।