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विरल सिद्धपुरुष : आचार्यश्री तुलसी
तेरापंथ के नवम गणाधीश आचार्य तुलसी एक ऐसे सिद्ध पुरुष थे जिनके चरणों का स्पर्श पाकर धरती हरी-भरी हो जाती, माटी चंदन बन सुवासित हो जाती, दिशाएं दर्शनीय बन जातीं, मौसम मनभावन बन जाता और हवाएं मंद-मंद मुस्कान बिखेरने लगतीं।
आचार्य तुलसी क्षीरास्रव लब्धिधारी सिद्ध पुरुष थे। उनकी अमृत देशना को सुनकर लोग मंत्र मुग्ध हो जाते थे। उनकी अमृत स्राविणी वाणी तृप्ति का अहसास कराती थी। घंटों उनकी वाणी को सुनने के बाद भी मन और अधिक सुनने को उत्कंठित रहता था।
आचार्य तुलसी तेजसंपन्न सिद्ध पुरुष थे, वे तेरापंथ के तेज थे। उनकी साधना ने संघ को तेजस्विता प्रदान की। उनके संयम के ओज ने संघ को ओजस्विता प्रदान की। उनके वर्चस्वी व्यक्तित्व ने संघ को वर्चस्विता प्रदान की। उनकी यशोगाथा ने संघ को यशस्विता प्रदान की।
आचार्य तुलसी प्रेरणापुञ्ज सिद्ध पुरुष थे। उनकी जीवन-पोथी का हर पृष्ठ प्रेरणा की स्याही से लिखा हुआ है। उनकी पोथी का हर पृष्ठ पढ़ने वाले के जीवन में प्रेरणा का प्रदीप प्रज्ज्वलित करता है। सिद्ध पुरुष का प्रेरणा संदेश अंतर्घट को आलोकित करने वाला है।
आचार्य तुलसी वज्रसंकल्पी सिद्ध पुरुष थे। आचार्य तुलसी संकल्प के महादेवता थे, उनके सारे संकल्प फलदायी बने। उन्होंने अपने जीवन में एक संकल्प किया था कि 'मुझे जीवन भर काम करना है'। गीत में लिखा है –
''जीवन भर काम करूंगा, गण का भंडार भरूंगा।
संकल्प अटूट निभाया रे, महाप्राण गुरुदेव।''
सचमुच, वह कर्मयोगी कर्म करते-करते कृतकाम बन गया।
आचार्य तुलसी विकासशील सिद्ध पुरुष थे। उनका जीवन विकास की वर्णमाला से गुंफित एक महाग्रंथ है। 'अथ' से 'इति' तक उनका जीवन विकास की कहानी है। उन्होंने संघ में विकास के पदचिह्न अंकित किए। उन्हीं पदचिह्नों का अनुसरण कर तेरापंथ विकास का पर्याय बन गया है।
आचार्य तुलसी असांप्रदायिक सिद्ध पुरुष थे। यद्यपि आचार्य तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य थे, किन्तु वे कभी संप्रदाय के घेरे में आबद्ध नहीं रहे। उनका चिंतन, भाव, भाषा और शैली में मानव मात्र का कल्याण निहित था। उन्होंने स्वयं एक बार प्रवचन में कहा था –
''नहीं उपाधि, नहीं विशेषण, नहीं जाति और पंथ है।
बस मेरा इतना-सा परिचय सुनो यह तुलसी संत है।''
आचार्य तुलसी प्रयोगधर्मी सिद्ध पुरुष थे। आचार्य तुलसी के शासनकाल को नूतन प्रयोगों की प्रयोगशाला कहा जा सकता है। उन्होंने व्यक्तिगत साधना की दृष्टि से अनेक प्रयोग किए जिससे साधना और अधिक तेजस्वी हो गई। संघीय धरातल को भी प्रयोगभूमि बनाया जिससे संघ की सुरभि सात समंदर पार पहुँच गई।
आचार्य तुलसी समाज सुधारक सिद्ध पुरुष थे। आचार्य तुलसी का मानस शांत था तो क्रांत भी था, रूढ़ था तो गतिशील भी था। उनके क्रांत मानस ने समाज में नवक्रांति की उद्घोषणा की। 'नया मोड़' उसी क्रांति का उपक्रम था।
'नया मोड़' कार्यक्रम के अंतर्गत पर्दा प्रथा, मृत्यु भोज, प्रथा रूपी रोना, विधवाओं के काले वस्त्र, दहेज आदि कुप्रथाओं के निवारण के लिए समाजव्यापी सघन कार्यक्रम किए गए। उन्हीं कार्यक्रमों की निष्पत्ति आज समाज के समक्ष है।
आचार्य तुलसी नैतिक क्रांति करने वाले सिद्ध पुरुष थे। आचार्य तुलसी ने देश की आज़ादी के बाद एक नारा दिया था – 'असली आज़ादी अपनाओ'। वे जानते थे कि चारित्रिक उन्नयन के बिना भौतिक विकास से सुदृढ़ भारत का निर्माण नहीं हो सकेगा। इसलिए आचार्य तुलसी ने देश के चारित्रिक उत्थान के लिए एक नैतिक क्रांति की, जो अणुव्रत आंदोलन के नाम से विख्यात हुई। इस क्रांति के माध्यम से आचार्य तुलसी ने लाखों व्यक्तियों को जैन तो नहीं, पर गुडमैन अवश्य बनाया है।
ऐसे विरल सिद्ध पुरुष आचार्य तुलसी की धवल, उज्ज्वल, निर्मल छवि, मनमोहक मूरत आज हमारे नयनों से ओझल हो चुकी है, परंतु उनका करिश्माई कर्तृत्व सदियों तक हमारे अंत:करण को आलोकित करता रहेगा। उनकी यशकाय संघ की यशवल्लरी को अभिवर्धित करती रहेगी। उनकी कीर्तिगाथा संघ का कीर्तिस्तंभ बनकर सदा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहेगी।
महाप्रयाण दिवस पर श्रद्धाभिवंदन के साथ –
''तुलसी! तुमने अणु को विराट बनाया है,
हर तरु को सिंचन देकर सरसब्ज
बनाया है,
कैसे उऋण होंगे तुम्हारे उपकारों से, ओ सिद्धपुरुष !
तुमने तो पंगु को भी पहाड़ चढ़ाया है।।''