पूजा करूंगी, करती रहूंगी

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‘शासनश्री’ साध्वी सुमनश्री

पूजा करूंगी, करती रहूंगी

हृदय देव मेरे, मैं हूं पूजारी,
पूजा करूंगी, करती रहूंगी।
श्रद्धा की ज्योति, भक्ति के मोती,
अर्पित करूंगी, करती रहूंगी।।
देकर भरोसा, कहां पर गए तुम,
खुली आंख में भी स्वप्न हो गए तुम,
जब तक मिलोगे ना, ढूंढती रहूंगी।।
गीत गुनगुनाते, मौन हो गए तुम,
थम ही गया क्यों गीतों का सरगम,
उत्तर मिलेगा ना, पूछती रहूंगी।।
फूलों से पूछा, कलियों से पूछा,
सागर से पूछा, नदियों से पूछा,
तुलसी कहां है? उस धार मैं बहूंगी।।
आसमां की गोद में, नूर है समाया,
चांद और सितारों में, तुलसी की छाया,
झिलमिल ज्योति को, देखती रहूंगी।।
क्षितिज पार देखा, सूरज चमकता,
लगा जैसे तेरा ही रूप है दमकता,
अनिमेष पलकों से निहारती रहूंगी।।
क्या तुम बसे हो दिव्य धरा में,
करो सिंहनाद, वाणी सुन लूं ज़रा मैं,
कण-कण जहां का, खोजती रहूंगी।।
तर्ज़ – तुम्हीं मेरे मंदिर