मोक्ष का द्वार है मनुष्य जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जोधपुर। 8 जून, 2025

मोक्ष का द्वार है मनुष्य जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के सम्राट आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 9 किमी का विहार कर उत्तर गुजरात के जोधपुर ग्राम स्थित पी. सेण्टर प्राथमिकशाला में पधारे। धर्मदेशना प्रदान करते हुए धर्मधुरंधर ने एक कथानक फरमाया कि एक पिता के तीन पुत्र थे। तीनों पुत्रों को साथ में बुलाकर उन्होंने कहा कि मेरा समय तो अब अधिकांशतः साधु-संतों की संगति में बीतता है, और मैं अब निवृत्ति की दिशा में हूं। पिता ने तीनों पुत्रों को 1000-1000 रुपये देकर कहा कि परदेश जाकर बारह वर्षों तक व्यापार करो। तीनों भाई माता-पिता की आज्ञा लेकर एक नगर पहुंचे और वहां तय किया कि जिसकी जहां इच्छा हो, वह अपना-अपना काम करे। बारह वर्षों की पूर्णता पर अमुक दिन यहीं पुनः मिलना है — और तीनों अलग-अलग दिशाओं में रवाना हो गए।
सबसे छोटा भाई समझदार और सादगीपूर्ण जीवनशैली वाला था। उसने व्यापार शुरू किया, जो बहुत आगे बढ़ा और भाग्य ने भी साथ दिया। हमारे जीवन में भाग्य और पुरुषार्थ — दोनों का अपना-अपना महत्व होता है। पूर्वजन्मों के पुण्य भी वर्तमान जीवन में काम आते हैं। उसने खूब धन कमाया और खर्चा बहुत सीमित रखा।
बीच वाले भाई ने भी व्यापार शुरू किया, किंतु उसमें सादगी कम थी — खर्चा बहुत करता था। उसकी कमाई और खर्च लगभग बराबर रहे, फलतः मूलधन तो सुरक्षित रहा, पर बाकी सब खर्च में चला गया। सबसे बड़ा भाई लकड़ियां काटकर लाता और बेचता। वह व्यसनों में पड़ गया, और पिता ने जो हजार रुपये दिए थे, वे भी समाप्त हो गए — कुछ भी शेष नहीं रहा। बारह वर्षों बाद तीनों पुनः मिले और अपने गांव लौटकर पिता के पास पहुंचे। पिता ने वात्सल्य भाव से तीनों के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। उन्होंने माता को प्रणाम किया। जीवन में माता-पिता का एक विशेष स्थान होता है। माता-पिता, गुरु और उपकारी का उपकार कभी नहीं भूलना चाहिए। पिता ने संध्या को तीनों को बुलाकर पूछा — ''बताओ, तुमने क्या कमाई की?''
बड़ा बेटा बोला — “पिताजी, मैंने कुछ भी नहीं कमाया। आपने जो दिया था, वह भी गंवा दिया।”
बीच वाला बोला — “पिताजी, जो कमाया, वह खर्च हो गया, परंतु आपने जो रकम दी थी, वह सुरक्षित है। आप इसे ले लीजिए।” छोटा बेटा बोला — “पिताजी, आपने जो हजार रुपये दिए थे, उससे मैंने करोड़ों की कमाई की है।” संसार में कमाऊ पूत अच्छा लगता है। यह एक सांसारिक उदाहरण है कमाई के क्षेत्र का। शास्त्रकार ने इसे धर्म के क्षेत्र में भी उद्घाटित किया है — कि यह मनुष्य जीवन एक मूल पूंजी है। चौरासी लाख योनियों में से कुछ ही को मनुष्य जीवन मिलता है। उनमें भी हम भाग्यशाली हैं जिन्हें यह मानव जीवन प्राप्त हुआ है। मनुष्य, जो साधना करके मोक्ष को प्राप्त कर सकता है, वह साधना देवता भी नहीं कर सकते। देवों को भी मोक्ष प्राप्त करने हेतु पहले मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ता है।
मनुष्यों में भी अनेक प्रकार के लोग होते हैं — कुछ इस पूंजी को गंवा देते हैं, वे पापों और बुरे कर्मों में लिप्त रहते हैं और मरकर नरक या तिर्यंच गति में चले जाते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो न अधिक पाप करते हैं, न अधिक पुण्य — वे पुनः मनुष्य बन सकते हैं। न कमाया, न गंवाया। कुछ मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो तपस्या, साधना, धर्म, अहिंसा आदि में रुचि रखते हैं और उसका पालन करते हैं। वे सरल, सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं। कुछ संन्यासी बन जाते हैं, कुछ गृहस्थ जीवन में ही साधनाशील रहते हैं — ऐसे श्रावक होते हैं। वे मरकर देव गति को प्राप्त करते हैं। वे सबसे छोटे भाई के समान होते हैं। हमें सोचना चाहिए कि यह मनुष्य जीवन मेरी पूंजी है — आगे मेरा क्या होगा? वर्तमान में तो हम पूर्व की पुण्याई भोग रहे हैं, जो क्षय को प्राप्त हो रही है। आगे के लिए भी कुछ संचय करें। पुण्य भी एक छोटी चीज है, हमें तो मोक्ष की अवस्था प्राप्त करनी है। संवर और निर्जरा द्वारा पूर्व कर्मों का क्षय कर हम मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। हमारी आत्मा अनादिकाल से जन्म-मरण के चक्र में फंसी हुई है।
मनुष्य जीवन मोक्ष का द्वार है — The Gate of Salvation। यदि इस द्वार को छोड़ दिया, तो फिर चौरासी लाख योनियों का चक्र चालू हो जाता है। इस मानव जीवन में हमें धर्म की साधना, अध्यात्म की आराधना का प्रयास करना चाहिए। पाँच अणुव्रतों का पालन कर क्रोध, मान, माया और लोभ को छोड़ने का प्रयास करें। जीवन में तपस्या हो। खाना तो शरीर का भाड़ा है, नहीं खाना आत्मा की कमाई है। जीवन में व्रत-नियम हों। जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति बनी रहे, तो सामान्यतः जीवन अच्छा हो सकता है। जीवन में सादगी हो — सादा जीवन, उच्च विचार — यही मानव जीवन का श्रृंगार है। ज्ञान और चारित्र हमारी सबसे बड़ी संपत्ति हैं। यह संपत्ति आगे भी हमारे साथ जा सकती है।
आत्मा की निर्मलता सबसे बड़ी बात है — पैसा बड़ी बात नहीं है। हम जीवन में धर्म और अध्यात्म की साधना करने वाले रहें — यही हमारे लिए श्रेयस्कर, हितकर और कल्याणकारी हो सकता है। पूज्यवर के स्वागत में गुजरात सूचना विभाग के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर पंकजभाई मोदी (प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी के भाई) ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसे महान गुरु के चरणों में रहने का अवसर मिला है। स्कूल की ओर से जयंती परमार ने भी अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।