
गुरुवाणी/ केन्द्र
दुर्लभ मनुष्य जीवन में धर्म का श्रद्धा से करें समाचरण : आचार्यश्री महाश्रमण
महान परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी मालपुर पी.जी. मेहता हाईस्कूल में पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए शान्तिदूत ने फरमाया कि इस दुनिया में कई चीजें सुलभ होती हैं तो कई चीजें मनुष्य के लिए दुर्लभ भी होती हैं। कोई चीज बड़ी आसानी से मिल जाती है, पर कोई चीज प्रयत्न करने पर भी न मिले या कभी मुश्किल से मिलने वाली हो सकती है। चौरासी लाख योनियाँ बताई गई हैं, उनमें मनुष्य जन्म सोने के समान है और कई जन्म ऐसे हैं जो कई लोगों के लिए सुलभ हैं। वनस्पति काय मानो अनंत जीवों के लिए सुलभ है। कितने-कितने जीव अनंत काल से वनस्पति काय में स्थित हैं। अव्यवहार राशि के जीव हैं, जो अनंत-अनंत काल से वहीं हैं। वनस्पति काय ही उनका घर है।
कहा गया है कि जितने जीव मोक्ष में जाते हैं, उतने ही जीव अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आ जाते हैं। व्यवहार राशि के जीव अवस्थित हैं। आना-जाना बंद हो जाए, विरह हो जाए या समीकरण हो जाए – इन दो कारणों से वे अवस्थित हैं। उत्पत्ति और उत्पन्न का समीकरण – जितने गए, उतने आ गए। व्यवहार राशि, मोक्ष और अव्यवहार राशि के योग से वैसी ही बनी रहती है। व्यवहार राशि में जितने जीव हैं, उतने ही रहेंगे। यह सृष्टि के संतुलन की स्थिति बनी हुई है। हमारी दुनिया में पता नहीं कितने-कितने नियम होंगे। सूक्ष्म जगत में क्या नियम और
क्या स्थितियाँ बनती होंगी – हम जान पाएं, न भी जान पाएं। कई बातें ग्रंथों में मिलती हैं। मोक्ष में जीव जाते रहते हैं, अव्यवहार राशि से निकलते रहते हैं, पर व्यवहार राशि में जितने जीव हैं, उतने ही रहते हैं। मोक्ष में वृद्धि है, अव्यवहार राशि में कमी है। मनुष्य जीवन कीमती और दुर्लभ है। यह दुर्लभ कई जीवों को प्राप्त भी होता है, उनमें हम लोग हैं, जिन्हें मनुष्य जन्म अभी मिला है। मनुष्य जन्म में आत्म-कल्याण के लिए जो कर सकें, कर लेना चाहिए।
जीवन तो बीत ही रहा है – जो करना हो, सो कर लो। जो कर सको, धर्म का संचय करते रहो। यह शरीर और धन-संपत्ति शाश्वत नहीं हैं। मृत्यु धीरे-धीरे निकट आ रही है। जन्मदिवस की खुशी भले मनाएं, पर यह सत्य है कि जीवनकाल का एक-एक वर्ष कम होता जा रहा है। जितना हो सके, धर्म की साधना और संवर-निर्जरा की कमाई करते रहें – यह संचित की हुई कमाई काम आ सकेगी। एक उम्र के पड़ाव के बाद निवृत्ति-संन्यास की तरफ गति हो। गृहस्थ जीवन में रहकर भी संन्यास का जीवन जिया जा सकता है। साधु-साध्वियां भी संन्यास में संन्यास ग्रहण करें। सुप्रणिधान साधना स्वीकार करें। एक उम्र के बाद विवेकपूर्ण मोड़ लेना चाहिए। श्रीमद् जयाचार्य को इस संदर्भ में देखा जा सकता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को भी उस संदर्भ में कुछ अंशों में देखा जा सकता है। गुरुदेव तुलसी ने तो परित्याग-विसर्जन ही कर दिया था। सक्रिय जीवन में नैतिकता, अहिंसा, नशामुक्ति और सद्भावना बनी रहे।
अभी अच्छे बन जाओ। क्षमता होते हुए भी संयम रखें। धर्म की बात को सुनना, श्रुति भी दुर्लभ हो सकती है। सुनी हुई बात पर श्रद्धा हो जाना भी मुश्किल है। श्रद्धा परम दुर्लभ है। श्रद्धा होने पर भी संयम में वीर्य-पराक्रम करना और भी मुश्किल है। ये चार चीजें दुर्लभ हैं – मनुष्य जन्म, धर्म श्रुति, धर्म श्रद्धा और संयम में पराक्रम। मनुष्य जन्म तो हमें प्राप्त है – शेष तीन को भी प्राप्त कर आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करें। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज साध्वी कीर्तियशाजी (गंगाशहर) की स्मृतिसभा का आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने उनकी संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान कराया। उनके संदर्भ में मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने अपने उद्गार व्यक्त किए।
स्वागत समारोह में मालपुर के पूर्व विधायक जसुभाई पटेल, तालुका पंचायत प्रमुख भाग्यश्रीबेन, पी.जी. मेहता हाईस्कूल के प्रिंसिपल सौरभभाई, राजकुमार पोरवाल, पंकज माण्डोत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बच्चों ने नशामुक्ति पर अपनी प्रस्तुति दी। ऋषि देरासरिया, हार्दिक माण्डोत, बालक धैन माण्डोत तथा वरदीचंद पोरवाल ने अपनी अभिव्यक्ति दी। मालपुर की कन्याओं ने भी स्वागत गीत का संगान किया। मालपुर स्थानकवासी समाज की ओर से प्रकाश देरासरिया ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।