अभ्याख्यान पाप से बचने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

उभराण। 5 जून, 2025

अभ्याख्यान पाप से बचने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ लगभग 10 किमी का विहार कर उभराण के श्री एम.एम. मेहता हाईस्कूल में पधारे। अमृत देशना प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि जैन धर्म में अठारह पाप बतलाये गये हैं। इनमें दूसरा पाप मृषावाद बताया गया है। फिर आगे एक आता है माया और फिर एक आता है अभ्याख्यान और फिर एक पाप माया-मृषा। यों ये चार पाप मानो माया और मृषा से जुड़े हुए से हैं। झूठ बोलने वाले का एक साथी तत्व है - माया। माया और मृषा दोनों संवृद्ध हो सकते हैं - कपट पूर्वक झूठ बोलना। व्यक्ति झूठ बोलने में कभी दूसरे व्यक्ति पर आरोप लगाता है। मन में द्वेष का भाव है, किसी को बदनाम करना है, झूठा आरोप लगाता है और उसे फैलाने का प्रयास करता है ताकि समाज में उसकी प्रतिष्ठा पर आंच आ जाये, गरिमा खत्म हो जाये। समाज उसको असम्मान की भावना से देखने लगे।
झूठा आरोप लगाने वाला पाप बन्ध से बद्ध हो जाता है। भगवती सूत्र में भी बताया गया है कि किसी प्रकार अभ्याख्यान लगाया जाता है, उसी प्रकार का उसका फल भोगना पड़ सकता है। झूठा आरोप लगाना, जिसे अभ्याख्यान पाप भी कहा जाता है, इससे मानव को बचने का प्रयास करना चाहिए। व्यक्ति द्वेष-विरोध की भावना से दूसरे पर झूठा आरोप लगा सकता है। राई का पहाड़ बनाना ठीक नहीं है। हमें अपने जीवन में किसी पर झूठा आरोप लगाकर बदनाम नहीं करना चाहिये। किसी की झूठी शिकायत नहीं करनी चाहिये। वरना उसका फल कभी भी भोगना पड़ सकता है। बिना मतलब बात पर नमक-मिर्च लगाकर पेश नहीं करना चाहिये। किसी के साथ अन्याय न हो। अपने या दूसरे के लिए हिंसाकारी झूठ नहीं बोलना चाहिये। दूसरे को कष्ट पड़े वैसा झूठ भी नहीं बोलना चाहिये। उत्तम बात तो यह है किसी ने आपका नुकसान किया भी है तो भी समता रखें। यही समझें कि मेरे परिग्रह कम रहा, संतोष रखें। भाई-भाई में भी प्रेम मजबूत रहे। पूज्यवर के स्वागत में विमलभाई पितलिया, पिन्टुभाई पिछोलिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।