
रचनाएं
जगमग ज्योति जलाई अनशन की
जगमग ज्योति जलाई अनशन की-२
अनशन की ज्योति जलाई, महिमा गाएंगे सार्थक जीवन की।।
1. कीर्तियशाजी ने साहस धर, कलश चढ़ाया संथारा कर।
गण में ख्यात बनाई स्वर्णिम, लाखों बधाई जन-जन की।।
2. तन में असाता का पार नहीं था, समता ही उपचार सही था।
डागा कुल की कीर्ति बढ़ाई, जागी पुण्याई परिजन की।।
3. संयम की बगिया को महकाया, सद्गुण सुमनों हार बनाया।
तप-जप अरु स्वाध्यायी बनकर, पाई विभुता चेतन की।।
4. तपोमूर्ति कमल मुनि जी, सफल बनाई निपजाई खेती।
च्यार तीर्थ में संथारा पचखाया, गरिमा बढाई शासन की।।
5. मल्लिकाश्री जी तन से मन से, सेवा की है अपनेपन से।
साता पहुंचाने की धुन में, परवाह नहीं रात्रि दिन की।।
6. विशदप्रज्ञाजी, लब्धियशाजी, हर पल देते चित्त समाधि।
सेवादायी सतियों ने अहोनिशि व्यावच की मन से उनकी।
7. स्वामीजी का शासन पाया, महाश्रमण का सुख भरा साया।
शांति निकेतन में मंगल आशीष, मिलती है माइत गण की।।
लय: ॐ अर्हं अर्हं गाएगा