अनशन कर थे ज्योत जलाई

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डॉ. साध्वी सुधाप्रभा

अनशन कर थे ज्योत जलाई

कीर्तियशाजी ख्यात बणाई, अनशन कर थे ज्योत जलाई।
अंत समय हिम्मत दिखलाई, गूजे थांरी यश शहनाई।
गण रो सुयश बढ़ायो है, अनशन मन नै ओ भायो है।।
तन में हुई बीमारी पण थे, मन मजबूती धारी।
अध्यात्म-चिकित्सा रो प्रण कर थे, जीवन नैया तारी।
अनशन री बलिहारी जावां, संथारे री महिमा गावां।।
उग्रविहारी मुनिवर थांने, संथारो पचखायो।
मृत्युंजय बण सतिवर थे तो, जीवन नै चमकायो।
साझ मिल्यो सब सतियां जी रो, शासनश्री और लब्धियशा रो।।
साध्वी मल्लिकाश्री जी मन स्यूं, सेवा साझी थांरी।
कीर्तियशा स्यूं मल्लिकाश्री री, जुड़गी ही इकतारी।
मल्लिकाश्री जी फर्ज निभायो, जीवन में ओ अवसर पायो।।
घणै साल स्यूं देख्या दिल्ली, पावस में म्हे थांनै।
हंसतो-खिलतो चेहरो थांरो, याद आवै है म्हानै।
अणुव्रत भवन में आया हा थे, मिल सबस्यूं हरसाया हा थे।।
ऊपर जाकर धर्मसंघ री, करज्यो सेवा सतिवर।
बडे़ भाग स्यूं पायो आपां, भिक्षु गण क्षेमंकर।
प्रभु महाश्रमण गणमाली, गण में आठूं पोर दीवाली।।
लय - नीले घोड़े रा असवार