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निर्जरार्थिता के अनेक प्रसंग आज भी स्मृति में
अनुजा साध्वी कीर्तियशाजी!
बचपन में मेरे द्वारा दी गई छोटी सी प्रेरणा को तुमने सम्यक् रूप् से ग्रहण किया और अपने आप को अध्यात्मपथ की पथिक बनाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। गुरुदेव तुलसी के कर कमलों से दीक्षित होने का तुम्हें सोभाग्य प्राप्त हुआ। तुम लगभग 19 वर्ष तक साध्वी चान्दकुमारी जी 'मोमासर' के साथ रहीं और मनोयोग से उनकी सेवा की। आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की दृष्टि की भी सम्यक् आराधना की। लम्बे साधु जीवन में हमारे साथ प्रलम्ब समय तक रहने के विशेष दो प्रसंग उपस्थित हुए। सन् 2015 बीदासर चाकरी (समाधिकेन्द्र) में साथ रहना हुआ। तुम्हारी सेवा भावना और निर्जरार्थिता के अनेक प्रसंग आज भी स्मृति में हैं।
आचार्यश्री महाश्रमण जी की भी अमृत दृष्टि तुम्हें प्राप्त हुई। चिकित्सा हेतु अनेक शहरों में प्रवास की अनुमति प्रदान की। इसी श्रृंखला में तुम्हारा मुम्बई आगमन हुआ और हम दोनों को साथ में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। तुम्हारी समता सराहनीय रही। तुमने स्व. सोहनलाल जी एवं श्राविका झमकूदेवी डागा के कुल को उज्जवल बना दिया, इसका मुझे गौरव है। अनासक्ति और वीतरागता की चेतना दिन-प्रतिदिन परिपुष्ट होती रहे यह मंगलकामना है। मैं अपनी सहवर्ती सभी साध्वियों के साथ खमतखामणा करती हूं। साध्वी मल्लिकाश्रीजी भी साधुवाद की पात्र हैं।