
रचनाएं
युगों-युगों तक याद रहेगा
मेरी द्वष्टि में, सुख की सृष्टि, है तुलसी का नाम।
युगों-युगों तक याद रहेगा, तुलसी गुरू मेरे राम।।
द्वितीया का चांद विश्व में, सूर्य बनकर छा गया।
बांटा उजाला जन-जन को, सबके हृदय में भा गया।
तुलसी-तुलसी रटन लगाऊं, तुलसी नाम में अनंत शक्ति।
वास्तु दोष हरण करे, जो तुलसी की करे भक्ति।
ऐसे गुरू तुलसी हैं, मेरे जन-जन के आत्मा राम।।
2. झूमर वदना के लाल दुलारे, तुम हो चंदेरी की शान।
कालु गुरू से दीक्षा लेकर, चले वीर पथ पर महान।
था ओजस्वी व्यक्तित्व तुम्हारा, आकर्षित करते कानों के बाल।
नयनों में अमृत झरता था, वाणी का ओज देखा अद्भुत कमाल।
जन-जन का करके कल्याण, कहां गये मेरे गुरू तुलसी राम।।
3. ले मशाल अणुव्रत की कर में, शंखनाद फूंका घर-घर में।
अहिंसा मै़त्री का संदेश देकर, जन कल्याण किया परिकर में।
हम आभारी आपश्री के, दिये युग को नये-नये आयाम।
समण श्रेणी का उपहार देकर, विदेशों में पहुंचाया जैन धर्म का नाम।
युगों-युगों तक वसुन्धरा पर, गूंजेगा तेरा यशगान।।
4. तुमने अनुपम राह दिखाई, प्रेक्षाध्यान की दिया उपहार।
जीवन विज्ञान, त्रिसूत्री आयाम से, खोला प्रगति का द्वार।
आगम संपादन का सुखद सपना, हुआ तेरा सुन्दर साकार।
डीम्ड युनिवर्सिटी पा जै. वि. भा. की आरती उतारता संसार।।
हम सब नहीं भूलेगें तुमको, जब तक हैं तन में प्राण।।
5. भैक्षव शासन और जैन धर्म को, पहुंचाया सात समन्दर पार।
ज्ञानशाला, पारमार्थिक शिक्षण संस्था से, हुआ संघ का विस्तार।
पदलिप्सा को छोड़ तुमने, दिखलाया विश्व को नूतन इतिहास।
महाप्रज्ञ को आचार्य पद देकर, कहलाये गणाधिपति संत तुलसीदास।
जैन शासन की कीर्ति फैलाकर, गंगाणै में कर गए महाप्रयाण।।
6. महाश्रमण महाश्रमणी दोनों, आपश्री की अनुपम कृति महान।
धरणी सम धैर्यधार खूब तपे शासन में, दिपाया नवमासन जहान।
सदियों तक अंकित रहेगा, गुरू तुलसी का स्वर्णाक्षर में नाम।
अर्पण करती कल्प पुष्प, श्रद्धासिक्त स्वीकारो मेरे भगवान।
देवलोक से दिव्य दर्शन दे दो, क्यों कर गए, यहां से प्रस्थान।