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साध्वी कीर्तियशाजी की स्मृति सभा का हुआ आयोजन
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमार जी, मुनि श्रेयांसकुमार जी, सुशिष्या 'शासनश्री' साध्वी बसंतप्रभा जी, 'शासनश्री' साध्वी शशिरेखा जी, सेवा केंद्र व्यवस्थापिका साध्वी विशदप्रज्ञा जी, साध्वी लब्धियशा जी एवं साध्वी जिनबाला जी के सान्निध्य में संथारा साधिका साध्वी कीर्तियशा जी की गुणानुवाद सभा का आयोजन हुआ। इस अवसर पर उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनि कमलकुमार जी ने कहा कि साध्वी कीर्तियशा जी विनम्रता, सहजता, सरलता, सहिष्णुता और गुरु भक्ति जैसे गुणों से सम्पन्न साध्वी थीं। अपने 43 वर्षों से अधिक के साध्वी जीवन में उन्होंने धर्मसंघ की अत्यंत निष्ठापूर्वक सेवा की। कैंसर जैसी असाध्य बीमारी में भी उन्होंने उच्च भावों से संथारा स्वीकार किया और दृढ़ता के साथ चढ़ते हुए भावों में आत्मकल्याण को सिद्ध किया। साध्वी मल्लिकाश्री जी ने छाया बनकर उनकी सेवा की। साध्वी विशदप्रज्ञा जी एवं साध्वी लब्धियशा जी ने मुझे उन्हें त्याग, प्रत्याख्यान, अनशन करवाने का अवसर प्रदान किया। तेरापंथ सभा गंगाशहर ने हर तरह से अपने दायित्व का निर्वहन पूर्ण सजगता से किया।
मुनि श्रेयांसकुमार जी ने मुक्तक के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। इस अवसर पर 'शासनश्री' साध्वी बसंतप्रभा जी ने कहा कि साध्वी कीर्तियशा जी में तीन विशेषताएँ प्रमुख रूप से थीं — समता, व्यवहार कुशलता और श्रमशीलता, जिन्हें सभी ने प्रत्यक्ष देखा। उनके संथारा संलेखना के लक्ष्य को साध्वी मल्लिकाश्री जी ने पूर्ण जागरूकता से सम्पन्न करवाया। 'शासनश्री' साध्वी शशिरेखा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की सबसे बड़ी विशेषता सेवा भावना है, जिसे गंगाशहर सेवा केंद्र में देखा जा सकता है। साध्वी कीर्तियशा जी की सेवा में साध्वी मल्लिकाश्री जी एवं अन्य साध्वियों ने अग्लान भाव से जो समर्पण दिखाया, वह अनुकरणीय और अनुमोदनीय है। गंगाशहर सभा द्वारा की जा रही चिकित्सा व अन्य व्यवस्थाएँ भी प्रशंसनीय हैं।
साध्वी विशदप्रज्ञा जी ने कहा कि अनशन, कर्म निर्जरा का एक विशेष साधन है, जिसके माध्यम से साधक अपने कर्मों का क्षय कर आत्मा को उर्ध्वगामी बना सकता है। कुछ निकाचित कर्मों के योग को तोड़े बिना छुटकारा नहीं मिलता। उन्होंने धर्मध्यान के माध्यम से रोगजनित कष्टों को सहन कर अंतिम समय में संथारा-संलेखना द्वारा आत्मा को मोक्षगामी बनाया। साध्वी लब्धियशा जी ने कहा कि जीवन में कष्ट आना 'पार्ट ऑफ लाइफ' है और उन्हें धैर्य व समता से सहन करना "आर्ट ऑफ लाइफ"। साध्वी कीर्तियशा जी ने भीषण कष्टों को भी समता से सहन किया। साध्वी मल्लिकाश्री जी ने उनके साथ बिताए क्षणों को साझा करते हुए कहा कि वे एक अप्रमत्त, सरल, उपशांत कषाय, विनम्र, स्वाध्यायशील साध्वी थीं। जप और तप को उन्होंने अपना मित्र बनाया, जो असाध्य बीमारी में भी उन्हें सम्बल प्रदान करते रहे।
साध्वी भव्यप्रभा जी ने कहा कि जन्म और मृत्यु के बीच का जो जीवन है, उसे कैसे जीना यह व्यक्ति की अपनी चॉइस होती है। साध्वी कीर्तियशा जी ने साधना को आलंबन बनाकर जीवन को सार्थक बनाया। साध्वी मननयशा जी ने पूज्य प्रवर द्वारा प्रदत्त तथा साध्वी कौशलप्रभा जी ने साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभा जी द्वारा प्रदत्त संदेशों का वाचन किया। साध्वीवृंद ने समवेत स्वर में सुमधुर गीत का संगान किया। \जैन लूणकरण छाजेड़, आसकरण पारख, जतनलाल संचेती, मांगीलाल बोथरा, संजू देवी लालाणी, मंजू बोथरा, केसर देवी भादाणी, डागा परिवार से गीतिका, हितेश डागा, मुकेश डागा आदि ने साध्वी कीर्तियशा जी के जीवनवृत्त पर प्रकाश डाला और उनकी आत्मा की उत्तरोत्तर आध्यात्मिक उन्नति हेतु मोक्षप्राप्ति की मंगलकामना की। अंत में मुनिश्री ने चार लोगस्स का ध्यान करवा कर साध्वीश्री के मोक्षगामी पथ की मंगलकामना की।