निर्ग्रन्थ दर्शन कार्यशाला का आयोजन

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किलपॉक, चेन्नई।

निर्ग्रन्थ दर्शन कार्यशाला का आयोजन

भारत वर्ष में निर्ग्रंथ दर्शन अति प्राचीन है। यह दर्शन जीवन का महान आधार है। इसका दर्शन और चिंतन सदा समय सापेक्ष रहा है। निर्ग्रंथ दर्शन का अस्तित्व मध्य काल में कुछ क्षत-विक्षत सा रहा पर वर्तमान युग के लिये यह दर्शन महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बना हुआ है। निर्ग्रंथ दर्शन के उन मौलिक तथ्यों को वर्तमान युग के सन्दर्भ में प्रकट करना आवश्यक समझा गया। इसी परिप्रेक्ष्य में किलपॉक में चातुर्मास कर रहे युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री मोहजीत कुमार जी के सान्निध्य में निर्ग्रंथ दर्शन कार्यशाला का आयोजन तेरापंथ युवक परिषद्, किलपॉक द्वारा किया गया।
निर्ग्रंथ दर्शन कार्यशाला के मुख्य अभिभाषक मुनि जयेश कुमारजी ने अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़े अनेक विषयों पर प्रस्तुति देकर निर्ग्रंथ दर्शन की महत्ता को प्रकट किया। उन्होंने कार्यशाला में जैन दर्शन, तेरापंथ दर्शन, मंत्र शक्ति, लाइफस्टाइल, इतिहास जैसे विषयों को अपने संभाषण का विषय बनाया। कार्यशाला के अंतिम दिन आयोजित मंथन समारोह में मुनि जयेश कुमार ने कहा निर्ग्रन्थ शब्द जैन धर्म का पर्यायवाची होने के साथ ही हमें अपने शरीर ,मन, आत्मा की ग्रंथियों से मुक्त होने की प्रेरणा प्रदान करता है। सभी प्रतिभागी कार्यशाला में प्राप्त बोधि से भीतर की ग्रंथियों को परिष्कृत करने का प्रयास करें। इस अवसर पर मुनि मोहजीत कुमार जी ने कहा निर्ग्रंथ दर्शन भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर बढने का दर्शन है। यह दर्शन प्रवृत्ति से निवृत्ति की दिशा में गतिमान होने का सुपथ है। इस पथ पर चलने को लिए निर्ग्रंथ दर्शन को समझना जरूरी है। यह दर्शन ही हमारी भाव धारा को प्रकृष्ट बना मोक्ष गति की राह को प्रशस्त बनाता है। कार्यशाला के व्यवस्थापन में तेयुप अध्यक्ष राकेश डोसी, उपाध्यक्ष सुयश सुराणा, मंत्री सुनील सकलेचा, संयोजक मोहित सुराणा एवं प्रसन्न बोथरा का विशेष योगदान रहा।