अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

धर्म बोध - दान धर्म


प्रश्न 14 : क्या दान देने का अधिकारी गृहस्थ ही है?
उत्तर : गृहस्थ के पास विविध प्रकार की वस्तुएँ होती हैं, इसलिए दान देने का मूल अधिकारी गृहस्थ ही है। साधु अपनी भिक्षा में समागत वस्तु को दूसरे साधर्मिक मुनियों को सभक्ति देता है, उसे आगमों में ‘वैयावृत्त्य’ कहा है। इसमें मात्र शब्द भेद है, निर्जरा में कोई फर्क नहीं है।

प्रश्न 15  : क्या दान मात्र पुण्य का हेतु है?
उत्तर : जो दान संयमी की जीवन-यात्रा में सहायक होता है, उसमें धर्म है, पुण्य है। जो दान असंयमी व संयमासंयमी की जीवन-यात्रा में सहायक होता है, वह धर्म व पुण्य का हेतु नहीं हो सकता।

(क्रमशः)