यादें... शासनमाता की - (5)

यादें... शासनमाता की - (5)

यादें... शासनमाता की - (5)

साध्वी स्वस्तिक प्रभा

10 मार्च, 2022, प्रातः 7 बजे परम पूज्य आचार्यप्रवर पधारे। वंदना के पश्चात्µ
आ0प्र0: रात में कैसे रहा?
सा0 सुमतिप्रभा: बैचेनी रही, नींद बहुत कम आई।
आ0प्र0: पाठ कर लें?
सा0प्र0: कृपा करवाएँ।
फिर आ0प्र0 ने महावीरत्धुई का पाठ किया।
सा0प्र0: आ0प्र0 बहुत कृपा करवा रहे हैं। सुबह-सुबह इतना समय लगा रहे हैं।
आ0प्र0: मैं कुछ बात बताऊँ? आपके साता है ना?
सा0प्र0: तहत् (फिर सोने का इशारा किया)।
आ0प्र0: आप भले पोढ़ाओ। (लेटिए) मैं इस प्रकार करता हूँ जिससे आपको न तो गर्दन मोड़नी पड़े और न ही मस्तक ऊँचा करना पड़े। मैं यहीं से खड़े-खड़े बोलता हूँ। संत भी कुछ खड़े हैं, कुछ बैठे हैं, खास बात नहीं। साधना के अनेक रूप हैं। जैसे मैंने आपसे बोम्बे जाने की बात कही पर आपका मन बोम्बे जाने का कम लग रहा है, ऐसा व्यवहार में लग रहा है।
सा0सुमतिप्रभा: आ0प्र0 कल जब वापस पधार गए, तब सा0प्र0 जी ने मुझसे कहा कि बंबई तुम्हारा है, तुम जाओ, मेरा तो मन नहीं है।
आ0प्र0: बंबई थोड़ा दूर पड़ जाता है। वैसे भी एक सीमा हो जाए। ज्यादा इधर-उधर घूमना होता नहीं है। मुख्यतया आपका बंबई नहीं जाना ही मानें।
सा0प्र0 जी ने स्वीकृति सूचक गर्दन हिलाई।
आ0प्र0: छापर तो दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है। छापर जाने में भी साधन से धक्के लग सकते हैं। छापर से पहले सरदारशहर है। मैं ऐसे बताना चाहता हूँ कि यात्रा की सीमा हो जाए। वह भी अपने संयम का एक उपक्रम बन सकता है। छापर का भी क्यों रखें? अपेक्षा हो तो हम भी दिल्ली में रह सकते हैं।
द्रव्य की भी सीमा कर सकते हैं। दवा के सिवाय भोजन में 11/13 द्रव्य की सीमा करवा देते हैं। 2 दिन का, 3 दिन का त्याग करवा दें, आप क्या-क्या लेते हैं?
सा0 सुमतिप्रभा: उकाली, दलिया, दूध, रस आदि।
आ0प्र0: 15 द्रव्य से ज्यादा तो एक दिन में लगते ही नहीं है?
सा0 सुमतिप्रभा: तहत्।
आ0प्र0: आपका मन हो तो यावज्जीवन 15 द्रव्यों की सीमा करवा दें। बड़ों का आगार तो है ही। भाषा बना लेंµसाध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी शासनमाता को प्रत्येक दिन में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य (औषध, भेषजµये सब अलग हैं) के कुल मिलाकर 15 द्रव्यों से ज्यादा का भोजन रूप में सेवन करने का यावज्जीवन के लिए त्याग है। ये आहार की सीमा हो गई। वैसे ही गमनागमन की भी सीमा हो सकती है। जैसे विशेष स्थिति के सिवाय दिल्ली से बाहर गमनागमन नहीं करना।
सा0प्र0: दिल्ली में रहकर क्या करेंगे?
आ0प्र0: फिर मेरे साथ ही मानें।
सा0प्र0 जी ने हाँ में मस्तक हिलाया।
आ0प्र0: बात हो गई, दिल्ली की इच्छा नहीं है। अगर मैं भी दिल्ली रह जाऊँ तो?
सा0प्र0 जी ने फिर स्वीकृति में सिर हिलाया।
आ0प्र0: बात आ गई, मूलतः अभी भी साथ में ही रहना चाहते हैं। प्रायः-प्रायः जीवन का अधिकांश समय गुरुकुलवास में ही बीता है। फिर मुख्य मुनिप्रवर को डायरी में लिखवायाµसा0प्र0 ने फरमाया है कि दिल्ली में रहकर क्या करना है? मैं तो शायद पूरा नहीं सुन पाया, ऐसा ज्ञात हुआ। इसका तात्पर्य हैµसा0प्र0 अभी भी गुरुकुलवास में ही रहना चाहती है और इन क्षणों में सा0प्र0 के मुख पर जो प्रसन्नता दिखाई दे रही है। वह बहुत अच्छी लग रही है। उदासीनता का अभाव होना हमें भी अच्छा लग रहा है।
करीब 9ः55 पर आ0श्री पुनः पधारे।
सा0प्र0: गुरुदेव ने कृपा करवाई, अब व्याख्यान में पधारें।
आ0प्र0: कैसे हैं?
सा0 सुमतिप्रभा: थोड़ी बैचेनी है। ज्यादा ‘जीसोरा’ नहीं है।
सा0प्र0: मालिक हो तो ऐसे हों जो इतनी संभाल करते हैं।
आ0प्र0: (साध्वी कल्पलता जी से) होम्योपैथी शुरू कर दी?
सा0 कल्पलता: तहत्, शुरू कर दी।
आ0प्र0: ऐलोपेथी चल रही है। होम्योपेथी भी शुरू हो गई। आयुर्वेदिक?
सा0कल्पलता: आयुर्वेदिक डॉ0 राजेश जी को जच नहीं रही है।
आ0प्र0: ठीक है, एक बार दो ही दवाई चलाते हैंµऐलोपेथी और होम्योपेथी।
सतियों में नर्सें कितनी हैं?
सा0कल्पलता: उठाने-बिठाने का कार्य तो सा0 अनुशासनजी, सुनंदाजी करते हैं। सुमतिप्रभाजी, शशिप्रभाजी भी सहारा देते हैं। (शेष अगले अंक में)

(क्रमशः)