यादें... शासनमाता की - (6)

यादें... शासनमाता की - (6)

यादें... शासनमाता की - (6)

साध्वी स्वस्तिक प्रभा

11 मार्च, 2022, प्रतिदिन की भाँति परमपूज्य आ0प्र0 का सा0प्र0 के पास पधारना हुआ।
साध्वी-समणी समुदाय द्वारा वंदना का क्रम सा0प्र0 के कक्ष में न होकर अब पिछले कुछ दिनों से बाहर ही हो रहा था। सा0प्र0 के कक्ष में पदार्पण के बाद-
आ0प्र0: (मुख्य नियोजिकाजी की ओर देखते हुए) कई पत्र आए हुए हैं, सुनाना हो तो सुना देवें, जैसे मौका लगे वैसे। कुछ तो सा0प्र0 जी के नाम से ही पत्र आए हुए हैं।
वापिस अंदाज हम 10 बजे के आसपास यहाँ आते हैं।
लगभग 10ः10 पर पुनः पधारकर
आ0प्र0: कैसे हैं? ठीक हैं?
सा0 सुमतिप्रभा: है, जैसे ही है।
आ0प्र0: पोढ़ाने (लेटने) की इच्छा हो तो पोढ़ा (लेट) जाए। आज डॉ0 से बात करी वेदना हो जाए तो पेनकिलर दे दें? डॉ0 ने कहा कि पेनकिलर नहीं देना चाहते। पेच (चंजबी) दे देवें? वो तो रात में भी लगा सकते हैं ना?
साध्वियाँ: हाँ, वो तो टेप (चाती) जैसी होती है।
आ0प्र0: वो अपने पास है क्या?
सा0 कल्पलता: नहीं, अभी तक नहीं है, अब रख लेंगे। डॉ0 जब उचित समझेंगे, तभी लगा देंगे।
आ0प्र0: अपने पास है ना? (नर्स की तरफ इशारा करते हुए) इनको पता नहीं क्या?
सा0 सुमतिप्रभा: नहीं, इनको पता नहीं।
आ0प्र0: डॉ0 से पूछकर कुछ पास में रख सकते हैं।
सा0 कल्पलता: तहत्, ध्यान रखेंगे।
आ0प्र0: मतलब तकलीफ से तड़फना नहीं पड़े-यह एक ध्यान रखने की बात है।
सा0प्र0: आप प्रवचन में पधारो।
आ0प्र0: अभी ज्यादा वेदना तो नहीं है?
सा0प्र0: नहीं।
आ0प्र0: ठीक है।
सा0 सुमतिप्रभा: अभी आ0प्र0 पधारे, उससे पहले कुछ क्षणों के लिए चक्कर सा आ गया। सा0प्र0 ने कहा कि उस टाइम ऐसा लगा कि मैं कहाँ जा रही हूँ?
आ0प्र0: चक्कर?
सा0सुमतिप्रभा: कुछ सैकेंड के लिए ऐसा लगा।
आ0प्र0: मोर पिच्छी पास में नहीं है क्या? कभी कोई जीव आदि बैठे तो ध्यान रखना चाहिए। इसमें दो बातें होती हैं-मान लो मक्खियाँ बैठ रही हैं तो कई बार बैठने से परेशानी होती है। खुद तो व्यक्ति उड़ा नहीं पाता तो मोरपिच्छी हो तो उड़ा सकते हैं। इसी प्रकार जीव-जंतु की भी बात है। दूसरी बात, कई बार खुजली आने लग जाती है। हो सकता है व्यक्ति खुद नहीं कर पाता किंतु मोरपिच्छी आदि से थोड़ा ऐसे कर दे। ये आसपास में रहनी चाहिए, जब जरूरत पड़े तब काम में ले लें। लगभग 3ः40 पर आ0प्र0 का पुनरागमन-
आ0प्र0: होम्योपैथी चल रही है?
सा0 कल्पलता: हाँ।
आ0प्र0: प्रति घंटे से।
सा0 कल्पलता: तहत्। सरदारशहर से कनकमलजी दुगड़ का समाचार आया कि गुरुदेव की मर्जी हो तो वैद्य को लेकर मैं खुद आ जाऊँ।
आ0प्र0: फिर एलोपैथी वाले।
सा0 कल्पलता: वो लोग तो ना ही कह रहे हैं।
आ0प्र0: (कुछ समय सोचकर) एक बार नहीं में ही रखते हैं।
सा0प्र0: आचार्यश्री के कितनी मेहनत हो जाती है?
आ0प्र0: नहीं-नहीं।
सा0 सुमतिप्रभा: सा0प्र0 जी ने फरमाया कि आ0प्र0 शाम को लगभग 6ः10 पर वापिस पधारते हैं, अब 6 बजे तक पधार जाएँ।
(शेष अगले अंक में)

(क्रमशः)