साध्वीप्रमुखाश्रीजी के मनोनयन पर
इस अभ्यर्थना के सुखद पलों में
कहाँ तुम्हें बिठाऊँ।।
कोई घर नहीं, दरबार नहीं
कहाँ तुम्हें सजाऊँ ।। इस---
हाथ जोड़ कर अर्ज करूँ मैं
चरण धरूँ इस मन मंदिर में
यहीं तुम्हें बधाऊँ ।। इस---
अखंड अंक जो नौ का पायें
उसकी भाग्य लता लहरायें
ऐसी साध्वीप्रमुखा को श्रद्धा चमन चढ़ाऊँ ।। इस---
दृश्य एक अनूठा देखा
गुरु ने जो खिंची थी रेखा
देख उसे पुलकित प्रफुल्लित मन बन जाऊँ ।। इस---
वंदन करूँ अभिनंदन तेरा
इतिहास बनेगा नव नवेला
भावों के सुनहरें गीत गढं पाऊँ ।। इस---
युगों-युगों तक करों शासना
चतुर्विध संघ की है वर्द्धापना
महाप्रज्ञ की कृति को भेंट चढ़ाने
शब्दों के पुष्प कहाँ से लाऊँ ।। इस---