साँसों का इकतारा

साँसों का इकतारा

साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा

(101)

बरस रही रसधार व्योम से अँखुआया भू पर उल्लास।
हर आंगन में हर देहरी पर आज छा रहा नया उजास।।

हिंसा की उत्कट ज्वाला से झुलस रहा सारा संसार
नफरत की मादक हाला से मूर्च्छित है सद्भाव उदार
तोड़ सरहदें मानवता की उग्रवाद पाता विस्तार
भय तनाव दहशत कुंठाएँ सदी बीसवीं का उपहार
ज्योति अहिंसा की द्योतित कर रच दो अब नूतन इतिहास।।

घुला हुआ विष आज हवा में जीवन की आशा धूमिल
भीतर गहराता अंधियारा ऊपर-ऊपर से झिलमिल
ठहर गई हैं राहें थककर मंजिल का अनुमान नहीं
पिघल रही हर साध मोम-सी सम्मुख स्वर्ण विहान नहीं
सुधा जहर को गीत पीर को धोखे को कर दो विश्वास।।

आँसू बहा रहे पत्थर भी देख देश के ये हालात
उजड़ी युग जीवन की बगिया पर न कहीं भी है बरसात
लौट रही बेरंग मनुज के ख्वाबों की सुंदर बारात
भक्षक आज बने हैं रक्षक आग उगलते हैं जलजात
घर-घर में उत्सव उतरेगा दो जन-जन को यह आश्वास।।

आज पुण्य अभिषेक दिवस है उदित हुआ है उजला प्रात
पावन हृदय रूप हिमगिरि से बहकर आया विमल प्रपात
है कर्तृत्व विलक्षण जीवन शरद चाँदनी-सा अवदात
नित प्रणम्य हो तुम अगम्य हो रम्य सदा रहते दिन-रात
रहो उगाते नए चाँद तुम व्यापक है गण का आकाश।।

(102)

जो ऊर्जा है मेरे भीतर
उसकी अब पहचान कराओ।
अथ इति का भूगोल बदलकर
आत्मशक्ति का भान कराओ।।

फसल उगी खुशियों की घर-घर
दिग्दिगन्त फैली सुवास है
देख अनुत्तर कार्य तुम्हारे
जगी सभी में नई आस है
निज उजास से हर मंदिर में
तुम अविनश्वर दीप जलाओ।।

तुम चिन्मय हो ज्योतिर्मय हो
युग का तमस तुम्हें धोना है
तुम विराट हो करुणामय हो
यह जग तो सचमुच बौना है
अवगुण्ठन हो दूर मोह का
ऐसा शुभ संदेश सुनाओ।।

सूर्य सदा करता रहता है
उजली किरणों से अभिनंदन
चाँद-सितारे सहज प्रणत हैं
कुदरत के कण-कण में स्पंदन
अंतरिक्ष झुकता चरणों में
क्या है इसका राज बताओ।।

जीवन-दर्शन युग दर्शन है
उससे प्रवर प्रेरणा पाएँ
मिले पीढ़ियों को आश्वासन
कुछ ऐसा करके दिखलाएँ
दीर्घ दिव्य जीवन पाकर तुम
गण-गौरव को शिखर चढ़ाओ।।

(क्रमशः)