इंसान ने अपने मस्तिष्क रूपी सुपर कंप्यूटर को रख दिया गिरवी

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इंसान ने अपने मस्तिष्क रूपी सुपर कंप्यूटर को रख दिया गिरवी

मुनि जिनेशकुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में स्मृति विकास एवं चंचलता निवारण हेतु 'विलक्षण कार्यक्रम एकाग्रता का - अवधान विद्या' एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रणीत प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों का आयोजन द डिविनिटि पैवेलियन में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा (पूर्वांचल) ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया गया। मुनि जिनेश कुमार जी ने धर्मसभा के समक्ष स्मृति विद्या का विलक्षण प्रयोग-अवधान प्रस्तुत करते हुए 24 अंकों की लम्बी संख्या, संस्कृत श्लोक, बहुभाषी शब्दों को स्मृति प्रकोष्ठ में अंकित कर अंत में ज्यों का त्यों सुनाया तो पूरा हॉल ओम् अर्हम की ध्वनि से गुंजायमान हो उठा। मुनिश्री ने बिना कागज, पेन का उपयोग किये सिर्फ मस्तिष्कय गणना से वार शोधन, सर्वतोभद्र यंत्र, घड़ी का समय बतलाना, माला प्रकाशन, घनमूल निष्कासन आदि सवालों के जवाब देकर श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। मुनिश्री ने अवधान विद्या पर प्रकाश डालते हुए कहा- अवधान विद्या चित्त की एकाग्रता और और स्मृति का स्फूर्त चमत्कार है। यह दीर्घकाल से प्रचलित है। अवधान का अर्थ है- ज्ञात-अज्ञात किसी भी परिचित बात या वस्तु को एकाग्र मन से अपने स्मृति कक्ष में धारण करना।
अवधान सिद्धि के पश्चात व्यक्ति को श्रवण मात्र से संस्कृत के श्लोकों एवं लम्बी संख्याओं को याद करने की क्षमता प्राप्त हो जाती है। कंप्यूटर, कैलकुलेटर, लैपटॉप के युग में इंसान ने अपने मस्तिष्क रूपी सुपर कंप्यूटर को उनके हाथों गिरवी रख दिया है जिसके कारण भूलने की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। एकाग्रता एवं स्मृति के विकास के लिए आहार, इन्द्रिय, कषाय, विचार एवं वाणी संयम के साथ व्यवस्थित दिनचर्या का पालन करना जरूरी है। प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों में महाप्राण ध्वनि, दीर्घश्वास प्रेक्षा, ज्ञान केन्द्र पर पीले रंग का ध्यान, शशांक आसन आदि के प्रयोग एकाग्रता के विकास में बहुत उपयोगी है। इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रमोद शाह ने 'क्या संभव है एकाग्रता से सफलता' विषय पर विचार प्रकट करते हुए कहा - ज्ञान का सार है- एकाग्रता। एकाग्रता धैर्य, त्याग, योग और संयम से प्राप्त होती है। प्रेक्षा साधक रणजीत दुगड़ ने एकाग्रता के विकास हेतु प्रेक्षाध्यान के प्रयोग कराते हुए कहा - किसी भी साधारण और असाधारण तथा किसी भी असफल और सफल व्यक्ति में अंतर है तो वह एकाग्रता का है। कार्यक्रम का शुभारंभ मुनि कुणाल कुमार जी के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत भाषण सभा अध्यक्ष हनुमानमल दुगड़ ने दिया। आभार ज्ञापन मंत्री बालचंद दुगड़ ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंद ने किया। कार्यक्रम में बृहत्तर कोलकाता के श्रद्धालुगण अच्छी संख्या में उपस्थित रहे।