महापथिक को आज बधाएं बारम्बार
युगप्रधान योगीश्वर के चरण कमल में वंदन शत बार।
महानिर्ग्रंथ के महापथिक को आज बधाएं बारम्बार।
संयम की गोल्डन जुबली पर वर्धापित करता मन का पोर-पोर,
अवनि अम्बर में छाई खुशियां आज घटा घनघोर।
गुरु महाश्रमण का पाकर पुलकित मन का कोर-कोर,
प्रकृति का कण-कण भी हरियल चुनर ओढ़कर लाई नई बहार।।
गुरु महाश्रमण से जुड़ती रहे जन्म जन्मों की इकतारी,
सांस-सांस में वास तुम्हारा नाम तेरा विघ्न बाधा हारी।
गुरुभक्ति शक्ति में आप्लावित हो सदा तेरी शरणहारी,
पावनचरणों में जो सदा रहता मिट जाता भवोदधि संसार।।
दुग्धस्नान संन्यास का वर्णन करूं ऐसा जग में शब्द कहां?
अरबों खरबों न्यूरोन्स से वंदन करूं ऐसा स्वर उपलब्ध कहां?
अध्यात्म के महासमंदर को माप सकूं ऐसा प्रज्ञालब्ध कहां?
संयम की सरिता में नित नए रत्न खोजू दे दो प्रभों! आशीर्वर।।