ग्रहों की शुभता बढ़ा देती है पुण्यवत्ता व प्रभावकता को

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ग्रहों की शुभता बढ़ा देती है पुण्यवत्ता व प्रभावकता को

मुनि कुलदीपकुमार जी के सान्निध्य में अष्टकर्म और नवग्रह विषय पर कार्यशाला का समायोजन हुआ। जनमेदिनी को संबोधित करते हुए मुनि कुलदीपकुमारजी ने अपने वक्तव्य में कहा जैन आगमों में अनेक रहस्य भरे हुए हैं, उन रहस्यों को खोजना, जानना और प्रयोग में लाना विशेष बात होती है। मुनि मुकुलकुमारजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि कर्म और ग्रहों में गहरी एकात्मकता है। कर्म का अर्थ है आचरण। मनुष्य के कर्म ही उसके अच्छे बुरे व्यक्तित्व का आईना है। हमारा जीवन द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से प्रभावित है। ग्रहों की शुभता जहां हमारी पुण्यवत्ता और प्रभावकता को बढ़ा देती है वही अशुभता कष्टों का ढेर भी लगा देती है। हमारे दैनिक जीवन में करने वाले कार्यों को ग्रहों और कर्मों की विशुद्धि को ध्यान में रखते हुए किया जाए तो हम एक तेजस्वी जीवन जी सकते हैं। जैन परंपरा में 88 महाग्रहों की चर्चा की गई है।
हमारे आचार, विचार और व्यवहार के संचालन में ग्रह प्रमुख रूप से निमित्त बनते हैं। जैन आगमो में वर्णित पूर्व राहु, ध्रुव राहु ,सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, भस्म ग्रह ,धूमकेतु ग्रह आदि पर मुनि मुकुल कुमार जी ने विशिष्ट विवेचना की। उन्होंने मुद्रा विज्ञान, हस्तरेखा विज्ञान ,योगासन, मंत्र विद्या आदि के द्वारा कर्मों और ग्रहों को शुभ बनाने की जानकारी प्रदान की। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में तेरापंथी सभा मुंबई, तेरापंथ सभा ट्रस्ट चेंबूर, तेरापंथी सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ किशोर मंडल एवं कन्या मंडल चेंबूर के कार्यकर्ताओं ने विशेष योगदान दिया।